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अथ पञ्चमः प्रस्तावः।
कषायजयो- अह गुरुणा वागरियं जो जीवदयं समीहए काउं। पृष्ठ ३९८. पदेशः। तेण कसायाण पराजयम्मि जत्तो विहेयव्वो ॥
जम्हा कसाय-विवसो किञ्चमकिच्चं च किं पि अमुणंतो। निद्दय-मणो पयट्टइ जीवो जीवाण पीडासु ॥ तो कोह-माण-माया-लोभा चउरो चउविहा हुंति । एकिकसो अणंताणुबंधि-पमुहेहिं भेएहि ॥
कज्जाकज-विचारण-चेयन्न-हरस्त विसहरस्सेव । क्रोधजयो- कोवस्स कोऽत्रगासं मइमं मण-मंदिरे दिज्जा ? | पदेशः। सुट्ठ जलणो जलंतो वि दहइ तं चेव जत्थ संलग्गो ।
कोह-जलणाउ जलिओ सठाणमन्नं परभवं च ॥ जिण-पवयण-मेह-समुद्भवेण पसमामएण कोव-दवं । विझवइ जो नरो होइ सिव-फलं तस्स धम्म-वणं ।। कोवेण कुगइ-दुक्खं जीवा पावंति सिंह-वग्ध व्व । होउं खमा-पग पुण लहंति सग्गा-ऽपवग्ग-सुहं ॥
(अत्र सिंहव्याघ्रकथानकमनुसन्धेयम् ) मानजयोपदेशः। ___ अट्ठ-मय टाणेहिं मत्तो अंतो-निविट्ठ-संकु व्व।।
पृष्ठ ४०२. कस्स वि अनमंतो तिहुयणं पि मन्नइ तणं व नरो॥ मय-वट्टो उड-मुहो गयणम्मि गणंतओ रिक्खाई। अनिरिक्खिय-सुह-मग्गो भवावडे पडइ किं चोजं ।। राया-ऽमच्चाईणं पि सेवओ माणवजिओ चेव । लहइ मण-वंछियत्थं पुरिसो माणी पुण अणत्थं ॥ माणी उव्वेय-करो न पावए कामिणीण काम-सुहं । इत्थीण काम-सत्थेसु कम्मणं मद्दवं जम्हा ॥ मोक्ख-तरु-बीय भूओ माण-त्थडस्स नत्थि धम्मो वि। धम्मस्स जो समए विणउ च्चिय वनिओ मूलं ॥ जाइ-कुलाइ-मरहिं नडिओ जीवो वि विडंबणं लहइ । तेहिं पुण वजिओ गोधणो व्व सुह-भायणं होइ ।
(अत्र गोधनकथानकमनुसन्धेयम् ) मायाजयोपदेशः। धम्म-वण-जलण-जाला मोह-महा-मयगलाण[जा] साला। पृष्ठ ४०७.
कुगइ-बहू-वर-माला माया सुह-मइ-हरण-हाला ॥
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