________________
कुमारपालस्य शत्रुञ्जयतीर्थयात्रावर्णनम् ।
अंब (?) तंबच्छीए अपुफियं पुष्फदंत-पंतीए । नव-सालि-कंजियं नव-वहूइ कुडएण मे दिन्नं ॥ गुरुणा भणिओ सीसो वच्छ ! पलित्तोसि ज पढसि एवं । सीसो भणइ पसायं कुरु मह आयार-दाणेण । एवं ति भणइ सूरी तो पालित्तो जणेण सो वुत्तो। जाओ य सुय-समुद्दो आयरिओ विविह-सिद्धि-जुओ॥
काऊण पाय-लेवं गयणे सो भमइ नमइ तित्थाई। नागार्जुनभिक्षु- सुणइ सुरट्ठ-निवासी भिक्खू नागज्जुणो एवं ॥ वर्णनम्। सो पत्थइ पालित्तं पयच्छ ! निय-पाय-लेव-सिद्धिं मे।
गिण्ह मह कणय-सिद्धिं, तत्तो पालित्तओ भणइ ।। निकिंचणस्स किं कंचणेण किं चत्थि मे कणय-सिद्धी। तुह पाय-लेव-सिद्धिं च पाव-हेउ त्ति न कहेमि ।। तो कय-सावय-रूवेण भिक्खुणा आगयस्स गिरिनयरे । गुरुणो गुरु-भत्तीए जलेण पक्खालिया चलणा। पय-पक्खालण-सलिलस्स गंधओ ओसहीण नाऊण । सत्तुत्तरं सयं तेण पाय-लेवो सयं विहिओ॥ तबसओ गयणे कुक्कुडो व्व उप्पडइ पडइ पुण भिक्खू । तो कहइ जहावित्तं गुरुणो तेणावि तुटेण ॥ भणिओ भिक्खू तंदुल-जलेण कुरु पाय-लेवमेयं ति । पृष्ठ १७९. कुणइ तह च्चिय भिक्खू जाया नह-गमण-लद्धी से । पालित्तयस्स सीसो व्व कुणइ नागज्जुणो तओ भत्तिं । नेमि-चरियाणुगरणं सव्वं पि कयं इमं तेण ॥ तं सोउं भत्ति-परो नरेसरो नेमिनाह-नमणत्थं । गिरिमारुहिउं वंछइ तो भणिओ हेमसूरीहिं ॥ नर-वर ! विसमा पज्जा अओ तुम चिट्ठ चडउ सेस-जणो । लहहिसि पुन्नं संबो व्व भावओ इह ठिओ वि तुमं ॥ तो रन्ना पट्टविया पहुणो पूया पहाण-जण-हत्थे । तत्थ ठिएणावि सयं गुरु-भत्तीए जिणो नमिओ ॥
अह जिण-महिम काउं अवयरिए रेवयाओ सयल-जणे । कुमारपालस्य शत्रु- चलिओ कुमारवालो सत्तुंजय-तित्थ-नमणत्थं ॥ अयतीर्थयात्रा- पत्तो तत्थ कमेणं पालित्ताणमि कुणइ आवासं । वर्णनम्। अह कुमरनरिंदो हेमसूरिणा जंपिओ एवं ॥
पालिताणं गामो एसो पालित्तयस्स नामेण ।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org