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कुमारपालप्रतिबोध-सङ्केपः ।
ल्लोचैः पल्लवितेव तैः कुसुमितेवोच्चूलमुक्ताफलैः । सौवर्णैः फलितेव यत्र कलशैराभाति सिक्ता सती
श्रीपार्श्वस्य शरीरकान्तिलहरीलक्षेण लक्ष्मीलता ॥ पासस्स मूलपडिमा निम्मविया जत्थ चंदकंतमई । जण-नयण-कुवलउल्लास-कारिणी चंद-मुत्ति व्व ॥ अन्नाओ वि बहुयाओ चामीयर-रुप्प-पित्तलमईओ। लोयस्स कस्स न कुणंति विम्हयं जत्थ पडिमाओ॥ संपइ देव-सरूवं मुणिऊण समुल्लसंत-सुह-भावो । तित्थयर-मंदिराई सव्वत्थ वि कारविस्सामि ।। तत्तो इहेव नयरे कारविओ कुमरवाल-देवेण । गरुओ 'तिहुण-विहारो' गयण-तलुत्तंभण-क्खंभो ॥ कंचणमय-आमलसार-कलस-केउप्पहाहिं पिंजरिओ। जो भन्नइ सच्चं चिय जणेण मेरु त्ति पासाओ ॥ जस्ति महप्पमाणा सव्वुत्तम-नीलरयण-निम्माया । मूल-पडिमा निवेणं निवेसिया नेमिनाहस्स ॥ कुसुमोह-अच्चिया जा जणाण काउं पवित्तयं पत्ता । गंगा-तरंग-रंगत-चंगिमा सहइ जउण व्व ॥ वटुंताण जिणाणं रिसह-प्पमुहाण जत्थ चउवीसा । पित्तलमय-पडिमाओ काराविया देवउलियासु ॥ एवमइकंताणं तह भावीणं जिणाण पडिमाओ। चउवीसा चउवीसा निवेसिया देवउलियासु ॥ इय पयडिय-धय-जसडंबराहिं बाहत्तरीइ जो तुंगो । सप्पुरिसो व्व कलाहिं अलंकिओ देवकुलियाहि ॥ अन्नेवि चउव्वीसा चउवीसाए जिणाण पासाया । कारविया तिविहार-प्पमुहा अवरे वि इह बहवो । जे उण अन्ने अन्नेसु नगर-गामाइएसु कारविया । तेसिं कुमर-विहाराण को वि जाणइ न संखं पि ।।
अह गुरुणा वागरियं देव-सरूवं जट्टियं तुमए । गुरुतत्त्वोपदेशः। मुणियं, नरिंद ! संपइ गुरु-तत्तं तुज्झ अक्खेमि ।।
अथमिएसु जिणेसुं सूरेसु व हरिय-मोह-तिमिरसु । जीवाइ-पयत्थे दोवओ व्व पयडइ गुरु चेय ॥ गुरु-देसणा-वरत्त वर-गुण-गुच्छं विणा गहीराओ । संसार-कूव-कुहरराउ निगमो नस्थि जीवाणं ।।
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