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कुमारपाल प्रतिबोधे
सग्गेवि गयह कुक्कुरु हवंति,
किरि पुन विगह इह न भंति ॥ ९३ ॥ चवणम्मि दइय-तियसंगणाई,
तणु- कंति - भरिय - गयण-गणाइ । विरहानल झलुसिय
"मग्गि वि नरय दुक्खु ॥ ९४ ॥ जइ हउं पहुत्तु सुरलोइ कह वि,
विसयास वियंभिय मज्झ तह वि । जइ राहु पत्तउ सग्ग लोइ, परिहरइ न दावणु पुट्टि तोइ ॥ ९५ ॥ कंदप्प -सह- प्पसर - पसर- भीरु,
रइ - कलह - कोव - कंपिर- सरीरु । घरदासु व्व पियाइ पाएसु पडिओ,
हउं ही वि गुत्तु विसयास- नडिओ ॥ ९६ ॥ ईसा विसाय-भय- मोह-माय,
मय- कोह- लोह- वम्मह - पमाय । मह सग्ग गयस्स वि पिट्टि लग्ग,
ववहरय जेव रिणिअह समग्ग ॥ ९७ ॥ सुररिद्धि नियवि हरिसिक्क - भवणु,
निव्वेय हे चिंते व चवणु । तह जाणि विनाणि कुठाणि जम्मु, जन्न उट्टु फुटु तं बलिउ कम्मु ॥ ९८ ॥ खणि वणि वणाउ भवणाउ भवणु,
ह अल्लियं तु सयणाउ सयणु । दिवचवण समइ दुहु पत्तु दीणु,
जिम्व तत्तसिलालि खित्तु मीणु ॥ ९९ ॥ इय तुम्हह अविणअ, सुर-भवि परिणउ, मज्झ दुक्खरूवेण तिम्व ।
air vas, अरइ विसइ,
सग्गसुहस्स वि उवरि जिम्व ॥ १०० ॥
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[ पथ्यमः
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