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[चतुर्थः
कुमारपालप्रतिबोधे तत्थ पुरी बारवई नव-बारस-जोयणाई पिहु-दीहा। । जा केवल कणयमई सहइ सुमेरुस्स बहिणि व्व ॥ पुहवीइ एक्क-वीरो नरिंद-सोलस-सहस्स-पणय-पओ। भरहद्ध-चक्कवही नवमो कण्हो निवो तत्थ ॥ तस्सासि जेट-बंधू बलदेवो नाम पबल-बाहु-बलो। तस्स निसढो त्ति पुत्तो असढो जो सव्व-कजेसु॥ तस्स सुओ संजाओ निय-कुल-नहयल-अलंकरण-भूओ। सागरचंदो चंदो व्व जणिय-जण-लोयणाणंदो॥ सिक्खिय-कला-कलावो सो संपत्तो कमेण तासन्नं । जं दट्टण पगिटुं चत्तो तियसेहिं रूव-मओ॥ मेहु व्व सिहीण रवि व्व पंकयाणं ससि व्व कुमुयाणं । अच्चंत-वल्लहो सो संब-प्पमुहाण सव्वेसिं ॥ अह तत्थ अस्थि वित्थिन्न-हत्थि-रह-तुरय-पत्ति-परिवारो। निक्कवड-विकम-धणो धणसेणो नाम मंडलिओ ॥ नव-कमल-गभगोरी कमल-मुही कमल-रत्त-कर-चरणा। कमल व्व कमल-नयणा कमलामेल त्ति से धूया ॥ सा जोव्वणं पवन्ना दिन्ना जणएण गरुय-रिद्धिए। निव-उग्गसेण-अंगुब्भवस्स नहसेण-नामस्स ॥ तम्मि समयम्मि पत्तो तस्स मिहं नारओ नहयलेण। वीणक्खमाल-भिसिया-पवत्तिया-छत्तिया-हत्थो॥ कन्नाइ तीइ लाभे तिलोय-सामित्तणाभिसेए व्व । परिओस-परिवसेणं न पूइओ नारओ तेण ॥ तो कुविओ नहसेणस्स नारओ तग्गिहाउ उप्पइउं । सागरचंद-कुमारस्स मंदिरे झत्ति संपत्तो॥ अन्भुट्ठाणासण-अग्घ-दाण-पणिवाय-पमुहमुवयारं । काउं सागरचंदेण पुच्छिओ नारओ एवं ॥ भयवं ! भुवणे भमिरेण किंचि अच्चन्भुयं तए दिद। भणियं रिसिणा दिé, कुमरेण पयंपियं किं तं ॥ तो नारएण कहियं-कुमार ! इत्थेव अस्थि नयरीए। धणसेण-निवइ-धूया कमलामेल त्ति वर-रूवा ॥
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