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२७४
[तृतीय
कुमारपालप्रतिबोधे तुममिच्छंतो जीयं मा सुत्तं तं विबोहेसु ॥ तो मागहेण वुत्तं रण-तूर-रवेण बंदि-सहेण । पर-चक-कलयलेण य जइ जग्गसि जग्ग ता सिग्धं ॥ भणियं मणिप्पभेणं एसोहं आगओ समर-हेउं । गंतूण मागहेणं अवंतिसेणस्स कहियमिणं ॥ पलय-घण-घोर-घोसं मणिप्पभो दावए समर-भेरिं ।
तत्तो तस्स अलेसं सेन्नं सन्नहिउमाढत्तं ॥ कहंढोइजति भडाणं सन्नाहा जच्च-कणय-रयण-मया । दिप्पंतोसहि-वलया समंतओ सेल-कूड व्व ॥ भड-रुहिर-लालसाओ जम-जीहाओ व्व खग्ग-लट्ठीओ। दुज्जण-वाणीओ विव भल्लीओ भेय-जणणीओ॥ वेसाओ व धणुहीओ गुण-वडाओ वि पयइ-कुडिलाओ।
पर-मम्म-घट्टण-परा पिसुण-पवंच व्व नाराया । तत्थएवमुवणिजमाणे रणोवगरणंमि केणइ भडेण । सन्नाहो न कओ च्चिय दइया-थण-फरिस-लुद्धेण ॥ केणावि समर-सडा-निबद्ध-गाढग्गहेण अवगणिया । थोरंसुय-सित्त-यणी निय-दइया रोवमाणी वि॥ अन्नेण सिढिल-वलया वियलिय-कंची गलंत-वाह-जला । एसोहमागओ झत्ति एवमासासिया दइया । अन्नस्स अप्पियं पीयमाणमवि पाण-वट्टयं भरियं । थोरंसुएहिं उवरिट्ठियाइ दइयाइ सुट्टयरं ॥ मुच्छाए चेव अन्नस्स दंसिओ पिययमाए अणुराओ। दइयाइ कयं मंगलमवरस्स विलक्ख-हसिएण ॥ इय विविह-वियार-पिया-पयडिय-पणएहिं पहरण करेहिं । करि-तुरय-रहारूढेहि सुहड-लक्खेहि परियरिओ॥ चंदण-विलित्त-देहो सिय-वत्थाहरण-कुसुम-कय-सोहो । गरुय-गय-क्खंध-गओ नीहरइ मणिप्पभो बाहिं । अह धारिणीइ अजाइ चिंतियं जाव निरवराहाण ।
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