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प्रस्तावः ]
दाने कुरुचन्द्रकथानकम् ।
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घेत्तूण तस्स वेसं ठिया इमा मयण-पिट्ठमि ॥ सो गिहिऊण पत्तिं नीरंगी-पिहिय-वयण-सयवत्तो। उग्घाडिउं दुवारं विणिग्गओ मयण-भवणाओ॥ पत्तिं पियंकराए समप्पिउं लग्गिऊण तीए करे। सो चडिओ जंपाणे तं कम्मयरेहिं उक्खित्तं ॥ पत्तो अलक्खिओ परियणेण सो पंचनंदि-गेहमि । मुणइ न मज्झं बंभा वि सुप्पउत्तस्स दंभस्स ॥ जाणाओ उत्तिन्नो पियंकराए वहू-हरं नीओ। कणयासणे निविट्ठो, पियंकराए इमं वुत्तो।। चिंतेसु पिय-समागम-मंतं तो निग्गया पियंकरिया । तो काम-रइ-समागम-मंतं सरि पवत्तो सो ॥ अह केसराइ माउल-धूया संखउर-वासिणी मइरा । पत्ता तत्थ विवाहे पुव्वं एएण जा दिहा ॥ तस्स पुरो उवविट्ठा नीससि जंपिउं पवत्ता सा। सहि ! अवसरो त्ति जंपेमि किं पि परिहरसु उव्वेयं ॥ जं अवहिओ विहि चिय इट्ठाणिढेसु सव्व-पाणीणं । संखउरे वि ठियाए मए सुओ तुज्झ वुत्तंतो ॥ मुत्तुं वसंतदेवं न रमेइ नरंतरम्मि तुह चित्तं । पिय-विरह-दुहं दुसहं सयमणुभूयंति जाणेमि ॥ धन्ना य तुमं जीए पिएण सह दंसणाइ-संभवइ । मज्झ पुणो वुत्तंतो सहि! सुव्वउ दारुणो बाढं ॥ नीहरियाहं सह परियणेण जत्ताइ संखवालस्स । मयणु व्व मए तरुणो असोग-तरुणो तले दिट्ठो॥ तस्स मए पट्टवियं सहिए कर-पंकएण तंबोलं। तेणावि रक्खियाहं मत्तगयाओ जमाओ व्व ॥ पुणरवि करि-संकाए नट्ठाहं सह सहीहिं सवाहिं । कहिं वि गओ सो वि जुवा मए गविट्ठो न दिहो य ॥ कत्थ वि रइमलहंती अलि-दट्ठा मकडि व्व तप्पभिई। तम्मि वणम्मि गयाहं तंमदर्से परुड्या सुइरं ॥
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