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प्रस्ताव: ]
गुरुसेवायां प्रदेशिकथा
तेसिं कुमर-विहाराण को वि जाणइ न संखं पि ॥ अह गुरुणा वागरियं देव सरूवं जहट्ठियं तुमए । मुणियं, नरिंद ! संपइ गुरु-तत्तं तुज्झ अक्खेमि ॥ अत्थमिएस जिणेसुं सूरेसु व हरिय- मोह - तिमिरेसु । जीवाइ- पयत्थे दीवओ व्व पयडइ गुरु चेय ॥ गुरु- देसणावरतं वर-गुण-गुच्छं विणा गहीराओ । संसार - कूव - कुहराउ निग्गमो नत्थि जीवाणं ॥ गुरुण कारुन्न- घणस्स देसणा-पय-भरेण सित्ताण । भविध दुमाणं विज्झाइ ज्झत्ति मिच्छत्त दावग्गी ॥ जो चत्त- सव्व-संगो जिइंदिओ जिय- परीसह कसाओ । निम्मल सील-गुणड्डो सो चेय गुरू न उण अन्नो ॥ नरय- गइ-गमण - जुग्गे कए वि पावे पएसिणा रन्ना । जं अमरत्तं पत्तं तं गुरु-पाय- पसाय फलं ॥
निव पुंगवेण भणियं को एस पएसि पत्थिवो भयवं । १ । पीयूस - पसर - पेसल - वयणेण पयंपियं गुरुणा ॥
अत्थित्थ जंबुद्दीवे भारहवासस्स मज्झिमे खंडे । नयरी आमलकप्पा सिरीइ अमरावई - - कप्पा ॥
तत्थय आगास-गएणं अक्क-मंडल- सम-प्यहेणं पुरओ चंकमंतेणं धम्मचक्केhti, आगास- गएणं तिहुअण- सामित्त सूयगेणं संपुन्न-ससि सच्छहेणं छत्तत्तएणं, आगास- गएणं फलिहमएणं विविह-रयण-भूसिएणं सपायवीढेणं सिंहासणेणं, आगास- गएहिं महग्घ-मणि - खंड - मंडिय-पिसंडि- दंड्डड्डामरेहिं सेय- वरचामरेहिं, अणेग- सुर-कोडि-समुक्खित्तेण पुरओ पयद्वेणं पवण-पणचंत-महापडा पडाइया सहस्स - परियरिएणं रयण भएणं । चउद्दसहि समण - साहस्से हि छत्तीसाए अज्जिया-सहस्सेहि य समेओ समागओ भयवं वद्धमाण-सामी । तत्तो सुरेहिं विहियं साल-त्तय सुंदरं समोसरणं । भावारि-वार- विहुरिय जगत्तय-त्ताण- दुग्गं व ॥
अह नवसु सुर कसुं कंचण-कमलेसु कंति-विजिएसु । सेवं कुणमाणेसु व सत्तसु पुरओ पयट्टेसु ॥ दोसु पुण चलण-जयलं कमेण भयवं ठवंतओ तत्थ । सुर-कोडीहिं परिगओ पुव्व-दारेण पविसेइ ॥
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