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अथ द्वितीयः प्रस्तावः ।
अन्नं च सुणसु पत्थिव ! जीव-दया-लक्खणो इमो धम्मो। जेण सयं अणुचिन्नो कहिओ अ जणस्स हिअ-हेउं । सो अरहंतो देवो असेस-रागाइ-दोस-परिचत्तो। सव्वन्नू अवितह-सयल-भाव-पडिवायण-पहाणो ॥ रागाइ-जुओ रागाइ-परवसं रक्खिउं परं न खमो । नहि अप्पणा पलित्तो परं पलित्तं निवारेइ ॥ धम्माधम्म-सरुवं सकइ कहिउँ कहं असव्वन्नू । रूव-विसेसं वोत्तुं अस्थि किमंधस्स अहिगारो॥ परमत्थं अकहंतो वि होइ देवो त्ति जुत्तिरित्तमिणं । गयणस्स वि देवत्तं अणुमन्नह अन्नहा किं न॥ जो अरहंतं देवं पणमइ झाएइ निच्चमचेइ । सो गयपावो पावेइ देवपालो व्व कल्लाणं ॥ रन्ना भणियं-भयवं ! कहेह को एस देवपालो त्ति । गुरुणा वुत्तं-पत्थिव ! सुणसु तुमं सावहाणमणो ॥ जंबुद्दीवे दिवे भरहे वासंमि मज्झिमे खंडे । सुर-पुर-पराजय-समत्थमस्थि हथिणउरं नयरं ॥ रेहति अ-रुक्खाइं मणाई वयणाई तह सरीराई। लोयस्स जत्थ मज्झे उजाणाई न उण बाहिं ॥ तत्थत्थि भुयग-पुंगव-गरुय-भुय-क्खंभ-धरिय-भूवलओ। नीइ-लया-नव-मेहो सीहरहो नाम नरनाहो॥ जस्स करवाल-दंडेण खंडिया निवडिया रणमहीए। अरि-कुंजर-दंता अंकुर व्व छज्जति जस तरुणो । कंचण-मणुज-कंती कंचणमाल त्ति से महादेवी । रइ-रंभा-पमुहाओ वहंति दासी-दसं जीए॥ तह तत्थ अत्थि सेही जिणदत्तो नाम जिण-चलण-भत्तो। मुणि-जण-सेवासत्तो दाणाणंदिय-सयल-सत्तो॥
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