________________
- १.२१७ ]
प्रथमो विभागः
[२५
अपरेषु विदेहेषु ताभ्यामेव विनिर्गता । तावन्त्य एव तत्संज्ञाः सीतोदां तु विशन्ति ताः ॥ २१२ समाख्याताश्च संज्ञाभिरेता ईरन्ति निम्नगाः । चतुर्दश सहस्राणि नद्यास्ताभिः सहैकशः ।। २१३ सचतुष्का सहस्त्राणामशीतिः कुरुनिम्नगाः । एकैकत्र द्वयोर्नद्योस्तदधं च तटे तटे ।। २१४
। ८४०० ।
चतुर्दश च लक्षाणामष्टाग्रा सप्ततिस्तथा । विदेहद्वय संभूताः सर्वा नद्यः प्रकीर्तिताः ।। २१५ सप्तदश च लक्षाणामयुतानि नवापि च । द्विसहस्रं नवत्यग्रं जम्बूद्वीपोद्भवापगाः ।। २१६
। १७९२०९० ।
बैडूर्य वृषभाख्यास्तु पर्वताः काञ्चनैः समाः । ससप्ततिशतं ते च वसन्त्येषु वृषामराः ।। २१७
। १७० ।
अपर विदेहोंमें उन्हीं दोनों ( नील और विश्व ) पर्वतोंसे निकली हुई गंगा-सिन्धु और रक्ता रक्तवती नामोंवाली उनतो ( सोलह ) ही वे नदियां सीतोदा महानदी में प्रवेश करती हैं ।। २१२ ।। ये नदियां उन नामोंसे प्रसिद्ध हैं । उनमेंसे एक एकके साथ संगत होकर चौदह हजार (१४००० ) नदियां गमन करती हैं ।। २१३ ।। चारसहित अस्सी अर्थात् चौरासी हजार ( ८४००० ) कुरुक्षेत्रस्थ नदियां उक्त सीता - सीतोदा नदियोंमें प्रत्येककी सहायक हैं । उनमें से एक एक तटपर आधी (४२०००) नदियां हैं ।। २१४ ।। दोनों विदेहक्षेत्रोंमें उत्पन्न हुई सब नदियां चौदह लाख अठहत्तर ( १४०००७८) कही गई हैं । यथा - १ सीता + १ सीतोदा + इनकी सहायक कुरुक्षेत्रस्थ नदियां १६८००० (८४००० x २ ) + विभंगा नदी १२ + इनकी सहायक नदियां ३३६००० (२८०००×१२ ) + बत्तीस विजयोंकी गंगा-सिंधु और रक्तारक्तोदा नामकी ६४ + इनकी सहायक नदियां ८९६००० (१४०००×६४)
१४०००७८
सब विदेहक्षेत्रस्थ नदियां ।। २१५ ।।
जम्बूद्वीप में उत्पन्न हुई समस्त नदियां सत्तरह लाख, नो अयुत ( १०००० x ९ ) दो हजार अर्थात् बानबे हजार नब्बे ( १७९२०९०) हैं। यथा--' भरतक्षेत्रकी गंगा-सिन्धु २ + इनकी सहायक नदियां २८००० + हैमवत क्षेत्रकी रोहित रोहितास्या २ + इनकी सहायक ५६००० + हरिवर्षकी हरित् हरिकान्ता २ + इनकी सहायक ११२००० + श्लोक २१५ में निर्दिष्ट विदेह क्षेत्रकी १४०००७८ + रम्यक क्षेत्रकी नारी नरकान्ता २ + इनकी सहायक ११२००० + हैरण्यवत क्षेत्रकी सुवर्णकूला-रूप्यकूला २ + इनकी सहायक ५६०००- ० + ऐरावत क्षेत्रकी रक्ता - रक्तोदा २ + इनकी सहायक २८००० = १७९२०९० ।। २१६ ॥ कांचन पर्वतोंके समान जो वैडूर्यमणिमय वृषभ नामक पर्वत हैं वे एक सौ सत्तर हैं
१ प 'बा' । लो. ४
Jain Education International
/
For Private & Personal Use Only
===
www.jainelibrary.org