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विषय-सूची
विषय
लोकपालोंके विमानोंके नाम
गणिका महत्तरियों के नाम
गणिकाओं की आयु के साथ कन्दर्पादि देवोंकी उत्पत्तिकी सीमा व आयु प्रमाण
कल्पों में प्रवीचारकी मर्यादा
वैमानिक देवोंके शरीरकी ऊँचाई
मानिक देवों में लेश्याका विभाग
वैमानिक देवों में विक्रिया व अवधिविषयकी मर्यादा
वैमानिक देवियों के उत्पत्तिस्थानकी सीमा
सौधर्म - ऐशान कल्पों में केवल देविओंसे और उभयसे परिपूर्ण विमानोंकी संख्या
वैमानिक देवोंके जन्म-मरणका अन्तर
इन्द्रादिकों का विरहकाल
अरुण समुद्रसे उद्गत अन्धकार और कृष्णराजियों का विस्तार
कृष्णराजियों के मध्य में लौकान्तिक- सुरालय
लौकान्तिक देवोंके विमान
उन सारस्वतादि लौकान्तिकोंकी संख्या
तिलोयपण्णत्ती ( ८,५९७ - ६३४) के अनुसार अरुण समुद्रके प्रणिधिभाग से उठे हुए अन्धकार और आठ कृष्णराजियोंकी प्ररूपणा करते हुए उनके अन्तराल में उक्त लौकान्तिकों के अवस्थानका निर्देश ईषत्प्राग्भार पृथिवी से निकली हुई रज्जुओंका तिर्यग्लोकमें पतन देवोंका उत्पन्न होकर स्वर्गीय अभ्युदयका देखना व अवधिज्ञानसे उसे धर्मका फल जानकर प्रथमतः जिनपूजामें और पश्चात् विषयोपभोग में प्रवृत्त होना महाकल्याणपूजामें कल्पवासियोंका आगमन व कल्पातीतों का वहींसे प्रणाम करना ११. ग्यारहवां विभाग
सिद्धों के निवासभूत ईषत्प्राग्भार पृथिवीका विस्तारादि उसका सर्वार्थ इन्द्रकसे अन्तरप्रमाण
तनुवात वलय के अन्त में सिद्धोंका अवस्थान
सिद्धोंकी अवगाहना व उनका ऊर्ध्वगमन
सिद्धोंका विशेष स्वरूप
सिद्धों के स्वाभाविक सुख तथा विषयजन्य सांसारिक सुखका स्वरूप लोककी ऊँचाई व अधोलोकका अन्तिम विस्तार मध्यलोकके ऊपर कल्पानुसार ऊँचाईका प्रमाण अपेक्षाकृत अधोलोक व ऊर्ध्वलोकका विस्तार कैसा जीवसिद्धिको प्राप्त होता है ग्रन्थकारकी प्रशस्ति
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श्लोकसंख्या
२७९-८०
२८१
२८२-८३
२८४
२८५-८७
२८८-८९
२९०-९३
२९४-९५
२९६-९७
२९८-३०४
३०५-६
३०७-१४
३१५-१७
३१८
३१९–२१
पृ. २१२-१५
३२२-२४
३२५-४७
३४९
१-३ ૪
६-८
९-१५
१६-४३
४४-४५
४६-४७
४७-४९
५०
५१-५४
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