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________________ -१०.२१६] दशमो विभागः [१९९ सोम-यम वरुण कुबेर । सोम-यम वरुण कुबेर चतुःश्लोक- सौ ५० सौ ६० सौ ७० ई ५० ७० रचना - ४०० ५०० ६०० | ४०० ६०० ५०० ५०० ६०० ७०० । ५०० ७०० ६०० तथैव सर्वकल्पेषु आच्युताल्लोकरक्षिणाम् । ज्ञातव्याः परिषद्देवा इत्याचार्यरभीप्सितम् ॥२१० विंशतिश्चाष्टसंयुक्ता सहस्राणां पृथग्मताः । सप्तानीकाद्यकक्षाणां द्विगुणाश्च क्रमोत्तराः ॥२११ ।२८००० । एकानीकसंख्या ३५५६०००। समस्तानीकसंख्या २४८९२०००। एवं सर्वेषु कल्पेषु सर्वेषां लोकरक्षिणाम् । संख्यातव्यान्यनीकानि पौराणिकमहर्षिभिः ॥२१२ शायो: सोमयमयोस्तयोः सामानिकेष्वपि । आयुः पल्यद्वयं साधं तदर्धं खलु योषिताम् ॥२१३ द्वादशाहात् पुनः ' सार्धान्मनसाहारसेवनम् । मुहूर्तेभ्यश्च तावद्भयस्तेषामुच्छ्वसनं मतम् ॥२१४ षडहात्पादसंयुक्ताद्देश्याहारनिषेवणम् । मुहूर्तेभ्यश्च तावद्भचस्तासामुच्छ्वसनक्षणम् ॥२१५. वरुणस्य समानां च न्यूनपल्यत्रयं भवेत् । देशोनपक्षादाहारः श्वासस्तावन्मुहूर्तकः ॥२१६ ।३। दि १५ । मु १५।। सौधर्म ईशान सोम यम वरुण कुबेर सोम यम वरुण कुबेर आ. ५० ५० ६० ७० । आ. ५० ५० ७० ६० म. ४०० ४०० ५०० ६०० म. ४०० ४०० ६०० ५०० वा. ५०० ५०० ६०० ७०० बा. ५०० ५०० ७०० ६०० _अच्युत पर्यन्त सब कल्पोंमें लोकपालोंके पारिषद देवोंका प्रमाण उसी प्रकार जानना चाहिये, यह आचार्यों को अभीष्ट है ॥ २१० ॥ लोकपालोंकी सात अनीकोंकी प्रथम कक्षा का प्रमाण अट्ठाईस हजार माना गया है । आगेकी कक्षाओं में वह क्रमसे उत्तरोत्तर दूना होता गया है । प्रथम कक्षा २८०००, समस्त एक अनीक ३५५६०००, समस्त सात अनीक २४८१२००० ॥ २११ ।। इसी प्रकार सब कल्पोंमें सब लोकपालोंकी अनीकोंकी संख्या प्राचीन महषियोंके द्वारा निदिष्ट की गई है ॥ २१२ ॥ सौधर्म इन्द्रके सोम और यम इन दो लोकपालों तथा उनके सामानिक देवोंकी भी आप अढ़ाई (२१) पल्य मात्र होती है। उनकी स्त्रियोंकी आयु उससे · आधी (११) पल्य जानना च हिये ।। २१३ ॥ सौधर्म इन्द्रके लोकपाल साढ़े बारह (१२३) दिनमें मानसिक आहारका उपभोग करते हैं । इतने (१२३) ही मुहूर्तों में उाका उच्छ्वास लेना माना गया है ।। २१४ ।। उनकी देवियां सवा छह (६३) दिनमें आहारका सेवन करती हैं तथा उतने (६१) ही मुहूर्तों में वे उच्छ्वास लेती हैं ।। २१५॥ वरुण और उसके सामानिक देवोंकी आयु कुछ कम तीन (३) पल्य प्रमाण होती है। उनके आहारकालका प्रमाण कुछ कम एक पक्ष (१५ दिन) तथा उच्छ्वासकालका प्रमाण १ ब द्वादशाहा पुनः। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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