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________________ -१०.२०० दशमो विभागः प्रथमानीकसंख्या एकानीकसंख्या सर्वानीकसंख्या ८४००० १०६६८००० ७४६७६००० ८०००० १०१६०००० ७११२०००० ७२००० ९१४४००० ६४००८००० इलोकसप्तकरचना -- ७०००० ८८९०००० ६२२३०००० ६०००० ७६२०००० ५३३४०००० ५०००० ६३५०००० ४४४५०००० ४०००० ५०८०००० ३५५६०००० ३०००० ३८१०००० २६६७०००० २०००० २५४०००० १७७८०००० सोमो यमश्च वरुणः कुबेरश्चेति लोकपाः । एककस्य तु चत्वारः पूर्वाद्ये दिक्चतुष्टये ॥१९६ तुल्यद्धयः सोमयमाः दक्षिणेन्द्रेषु कीर्तिताः । अधिका वरुणास्तेभ्यः कुबेरा अधिकास्ततः ॥१९७ महद्धिकास्तु घरुणा उत्तरेन्द्रेषु भाषिताः। तेभ्यो होनाः कुबेराः स्युस्तेभ्यो हीनाः समाः परे ॥ प्रत्येकं लोकपालानां स्त्रीसहस्रं चतुर्गुणम् । सामानिकाश्च तावन्तो देव्य एषां च पूर्ववत् ॥१९९ ।४०००। ४०० (?) । ४०००। सहस्रं परयोर्देव्यस्ताभिः सामानिकाः समाः । तेषामप्येकशो देव्यस्तावन्त्य इति भाषिताः ॥२०० ।१०००।१०००। ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ००० ० ० ० ० ० ० ० ० प्रथम कक्षा एक अनीककी सातों अनीकोंकी समस्त संख्या समस्त संख्या सौधर्म ८४००० १०६६८००० ७४६७६००० ईशान ८०००० १०१६०००० ७११२०००० सनत्कुमार ७२००० ९१४४००० ६४००८००० माहेन्द्र ७०००० ८८९०००० ६२२३०००० ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर ६०००० ७६२०००० ५३३४०००० लान्तव और का. ५०००० ६३५०००० ४४४५०००० शुक्र और महा. ४०००० ५०८०००० ३५५६०००० शतार-सहस्रार. ३०००० ३८१०००० २६६७०००० आनतादि चार २०००० २५४०००० १७७८०००० एक एक इन्द्रके पूर्वादिक चार दिशाओं में क्रमसे सोम, यम, वरुण और कुबेर ये चार लोकपाल होते हैं ।। ११६ ।। दक्षिण इन्द्रोंमें सोम और यम ये समान ऋद्धिवाले, उनसे अधिक वरुण तथा उनसे भी अधिक कुबेर कहे गये हैं ।। १९७ ।। उत्तर इन्द्रोंमें वरुण महाऋद्धिसे सम्पन्न होते हैं, उनसे हीन कुबेर और उनसे भी हीन होकर परस्पर समान ऋद्धिवाले सोम एवं यम कहे गये हैं ।। १९८।। प्रत्येक लोकपालके चार हजार (४०००) देवियां और उतने (४००० ही सामानिक देव भी होते हैं । इन सामानिक देवोंकी देवियोंका क्रम पूर्वके समान अपने अपने लोकपालके समान जानना चाहिये ।। १९९ ॥ __ आगेके दो इन्द्रों (सनत्कुमार व माहेन्द्र) के लोकपालोंमेंसे प्रत्येककी एक हजार (१०००) देवियां और उनके ही बराबर (१०००) सामानिक देव भी होते हैं। उन सामानिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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