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-९.३१] नवमो विभागः
[१६७ देहाश्चान्ये महादेहास्तूष्णीकाः प्रवचनाल्यकाः । चतुर्दशकुला एवं पिशाचव्यन्तराः स्मृताः १८ इन्द्रो कालमहाकालौ पिशाचानां प्रकीतितौ । पल्योपमायुषावेतौ द्वे द्वे देव्यौ च वल्लभे ॥ १९ कालस्याग्रमहिष्यौ द्वे कमला कमलप्रभा । महाकालस्य देवस्य उत्पला च सुदर्शना । २० एकैकस्याः परीवाराः सहस्रं खलु योषिताम् । अर्धपल्योपमायुष्काश्चतस्रोऽपि वरस्त्रियः॥ सुरूपाः प्रतिरूपाश्च तथा भूतोत्तमा परे । प्रतिभूता महाभूताः प्रतिच्छनाश्च नामतः ॥ २२ आकाशभूता इत्यन्ये भूतानां सप्तमो गणः । सुरूपः प्रतिरूपश्च तेषामिन्द्रो मनोहरौ ॥ २३ रूपवत्युदिता देवी बहुरूपा च वल्लभा । सुरूपे प्रतिरूपस्य सुसीमासुमुखे प्रिये ॥ २४ हाहासंज्ञाश्च गन्धर्वाः हुहसंज्ञाश्च नारदाः । तुम्बख्यिाः कदम्बाश्च वासवाश्च महास्वराः ॥२५ गीतरतीनी गो]तयशोनामानो भैरवा अपि । इन्द्रौ नीतरतिस्तेषामन्यो नीतयशा' इति ॥ २६ सरस्वती प्रियाद्यस्य स्वरसेना च नामतः । नन्दनीति द्वितीयस्य देवी च प्रियदर्शना॥ २७ दशधा किनरा देवा आद्याः किंपुरुषाबकाः । द्वितीयाः किनरा एव तृतीया हृदयंगमाः ॥ २८ रूपपालिन इत्यन्ये परे किनकिनराः । अनिन्दिता मनोरम्या अपरे किनरोत्तसाः ॥ २९ रतिप्रिया रतिज्येष्ठा इति भेदा दशोदिताः । इन्द्रः किंपुरुषाख्योऽत्र किनरश्च प्रकीर्तितः ॥३० अवतंसा केतुमत्या वल्लभे प्रथमस्य ते । रतिषणा द्वितीयस्य देवी चापि रतिप्रिया ॥ ३१
अचौक्ष (अशुचि), सतालक, देह, महादेह, तूष्णीक और प्रवचन; ये पिशाच व्यन्तरोंके चौदह (१४) कुल माने गये हैं ।। १७-१८ ।। इन पिशाचोंके काल और महाकाल नामके दो इन्द्र कहे गये हैं। इनकी आयु पल्य प्रमाण होती है। उनमें से प्रत्येकके दो दो वल्लभा देवियां हैं- काल इन्द्रकी उन अग्रदेवियोंके नाम कमला और कमलप्रभा तथा महाकालकी अग्रदेवियोंके नाम उत्पला और सुदर्शना हैं । इन अग्रदेवियोंमेंसे प्रत्येकके एक हजार (१०००) प्रमाण परिवार देवियां होती हैं। उन चारों अग्रदेवियोंकी आयु अर्ध पल्योपम प्रमाण जानना चाहिये ॥१९-२१॥
सुरूप, प्रतिरूप, भूतोत्तम, प्रतिभूत, महाभूत, प्रतिच्छन्न और सातवां आकाशभूत; ये सात कुल भूत व्यन्तरोंके हैं। इनके इन्द्रोंके मनोहर नाम सुरूप और प्रतिरूप हैं । उनमें रूपवती और बहुरूपा नामक दो अग्रदेवियां सुरूप इन्द्रके तथा सुसीमा और सुमुखा नामक दो अग्रदेवियां प्रतिरूप इन्द्रके हैं ॥ २२-२४ ।।
हाहा, हूहू, नारद, तुम्बरु, कदम्ब, वासव, महास्वर, गीतरति, गीतयश और भैरव ; ये दश गन्धर्व व्यन्तरोंके कुल हैं । उनके नीतरति और नीतयश नामक दो इन्द्र होते हैं। इनमें प्रथम इन्द्रके सरस्वती और स्वरसेना नामकी तथा द्वितीय इन्द्रके नन्दनी व प्रियदर्शना नामकी दो दो इन्द्राणियां होती हैं ।। २५-२७ ।।
प्रथम किंपुरुष नामक, द्वितीय किंनर, तृतीय हृदयंगम, चतुर्थ रूपपाली, पंचम किनरकिनर, छठा अनिन्दित, सातवां मनोरम्य, आठवां किनरोत्तम, नौवां रतिप्रिय और दसवां रतिज्येष्ठ; इस प्रकार ये दस कुल किनर व्यन्तरोंके कहे गये हैं। इनमें किंपुरुष और किंनर नामके दो इन्द्र निर्दिष्ट किये गये हैं । इनमेंसे प्रथमके अवतंसा और केतुमती तथा द्वितीयके रतिषणा और रतिप्रिया नामकी दो दो अग्रदेवियां होती हैं ।। २८-३१ ॥
१२ गीत।
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