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१५४] लोकविभागः
[८.५९रूवहियपुढ विसंखं तियचउसत्तेहि गुणिय छन्मजिदे । कोसाणं बेहुलियं इंदयसेढीपइण्णाणं ॥८ इं. को. १।३।२।।३।५।४। श्रे ।।२।१।४।१४।५ ।प्र ।।१४।३।७। । [] पदराहदबिलबहलं पदरट्ठिदभूमिदो विसोहित्ता । रूऊणपदहिदाए बिलंतरं उड्ढगं तीए ॥९
प्रथमपृथ्वीन्द्रकान्तरं ३ १ १९८७ श्रेणीबद्धान्तरं २३३९८७ प्रकीर्णकान्तरं ५३,५५६० । पूर्व कांक्षा महाकांक्षा चापरे दक्षिणोत्तरे । पिपासातिपिपासा च भवेत् सीमन्तकस्य च ॥५९ निरयाः ख्यातनामान: प्रथमे प्रतरे मताः । मध्ये मानुषवास्योरुः शेषाश्चासंख्ययोजनाः ॥ ६० अनिच्छा तु महानिच्छा अविद्येति च नामतः । महाविद्या च वंशाधारततकायाश्चतुर्दिशम् ॥ ६१ दुःखा खलु महादुःखा वेदा नाम्ना तु दक्षिणा । महावेदा च तप्तस्य दिक्षु शैलादिषु स्थिताः ॥६२
असंख्यात योजन भी है ॥ ७ ।। एक अधिक पृथिवीसंख्याको क्रमसे तीन, चार और सातसे गुणित करके प्राप्त राशिमें छहका भाग देनेपर जो लब्ध हो उतने कोस क्रमसे इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक बिलोंका बाहल्य जानना चाहिये ॥ ८॥
उदाहरण- जैसे यदि हमें छठी पृथिवीके इन्द्रकादि बिलोंके बाहल्यका प्रमाण जानना अभीष्ट है तो उक्त नियमके अनुसार वह इस प्रकारसे ज्ञात हो जाता है- पृथिवीसंख्या ६; {(६+१)x३}-:-६=३३ कोस ; छठी पृथिवीके इन्द्रकोंका बाहल्य।। (६+१)x४} : ६=४१ कोस; छठी पृथिवीके श्रे. ब. बिलोंका बाहल्य। {(६+१)x७} : ६=८१ कोस; छठी पृथिवीके प्र. बिलोंका बाहल्य।
पृथिवीक्रमसे इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक बिलोंका बाहल्य| पथिवी धर्मा । वंशा मेघा । अरिष्टा । अंजना । मघवी | माधवी । इन्द्रक १ कोस १३ को. २ को. २३ को. ३ को. ३३ को. ४ को. श्रेणीबद्ध १३, २ , २३, ३३ ॥ ४ ॥ प्रकीर्णक २३, ३३, ४ , ५ , ७, ८ , ९ ,
विवक्षित पृथिवीमें जितने पटल हों उनकी संख्यासे गुणित बिलके बाहल्यको प्रतरस्थित भूमि अर्थात् पृथिवीकी जितनी मुटाईमें बिल स्थित हैं उसमेंसे कम करके शेषको एक कम गच्छसे गुणित करनेपर उक्त पृथिवीके बिलोंका ऊर्ध्वग अन्तराल प्राप्त होता है- प्रथम पथिवी के इन्द्रक बिलोंका अन्तर ३११९८७ ; उसीके श्रे. ब. बिलोंका अन्तर २३३६५७; उसीके प्रकीर्णक विलोंका अन्तर ९३५४४ (देखिये पीछे श्लोक १७ का विशेषार्थ) ॥९॥
प्रथम पृथिवीके प्रथम पटलमें स्थित सीमन्तक इन्द्र क बिलके पूर्व में कांक्षा, पश्चिममें महाकांक्षा, दक्षिणमें पिपासा और उत्तरमें अतिपिपासा; इन प्रसिद्ध नामोंवाले चार श्रेणीबद्ध दाक बिल हैं । इनके मध्यमें जो सोमन्तक इन्द्रक बिल है उसका विस्तार मनुष्यलोकके बराबर पैतालीस लाख (४५०००००) योजन और शेष चार श्रेणीबद्धोंका विस्तार असंख्यात योजन मात्र है ।। ५९-६० ।। अनिच्छा, महानिच्छा, अविद्या और महा-अविद्या नामके चार श्रेणीबद्ध बिल वंशा पृथिवीके प्रथम ततक इन्द्रककी चारों दिशाओंमें स्थित हैं ॥ ६१॥ दुःखा, महादुःखा, वेदा और महावेदा नामके चार श्रेणीबद्ध बिल शैला (तृतीय) पृथिवीके तप्त इन्द्रककी पूर्वादिक
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