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________________ प्रस्तावना [११ ३. विषयका सारांश प्रस्तुत ग्रन्थ में निम्न ११ प्रकरण हैं, जिनमें अपने अपने नामके अनुसार लोकके अवयवभूत जम्बद्वीप एवं लवणसमुद्र आदिका वर्णन किया गया है। यथा ----- १. जम्बहीपविभाग---- इस प्रकरणमें ३८४ श्लोक हैं । यहाँ जिन-नमस्कारपूर्वक क्षेत्र, काल, तीर्थ, प्रमाणपुरुष और उनके चरित्र स्वरूपसे पाँच प्रकार के पुराणका निर्देश करके यह बतलाया है कि अनन्त आकाशके मध्य में जी लोक अवस्थित है उसके मध्यगत विभागका नाम तिर्यग्लोक है। उसके मध्यमें जम्बद्वीप, और उसके भी मध्यमें मन्दर पर्वत अवस्थित है । लोकके तीन विभाग इस मन्दर पर्वतके कारण ही हुए हैं --- मन्दर पर्वतके नीचे जो लोक अवस्थित है उसका नाम अधोलोक, उस मन्दर पर्वतकी ऊंचाई ( १ लाख यो.) के बराबर ऊंचा द्वीपसमुद्रोंके रूपमें जो तिरछा लोक अवस्थित है उसका नाम तिर्यन्लोक,तथा उक्त पर्वतके उपरिम भागमें अवस्थित लोकका नाम ऊर्ध्वलोक है। इस प्रकार लोकके इन तीन विभागों और उनके आकारका निर्देश करते हुए तिर्यग्लोकके मध्यमें अवस्थित जम्बूद्वीपके वर्णनमें छह कुलपर्वत, सात क्षेत्र, विजया व उसके ऊपर स्थित दो विद्याधरश्रेणियोंक ११० नगर, नाभिगिरि आदि अन्य पर्वत, गंगा-सिन्धु आदि नदियाँ, जम्बू व शाल्मलि वृक्ष, ३२ विदेह, मेरु पर्वत व उसके चार वन, जिनभवन, जम्बद्वीपकी जगती, विजयादिक ४ गोपुरद्वार तथा इस जम्बूद्वीपसे संख्यात द्वीप जाकर आगे स्थित द्वितीय जम्बूद्वीप व उसके भीतर अवस्थित विजयदेवका पुर; इन सब भौगोलिक स्थानोंका वर्णन यहां यथास्थान समुचित विस्तारके साथ किया गया है। २. लवणसमुद्रविभाग-- इस प्रकरणमें ५२ श्लोक हैं । यहाँ लवणसमुद्रके विस्तार व उसके आकारका निर्देश करके कृष्ण व शुक्ल पक्षके अनुसार उसके जलकी ऊंचाईमें होनेवाली हानि-वृद्धिका स्वरूप दिखलाया गया है । इस समुद्रके मध्यमें जो पूर्वादि दिशागत ४ प्रमुख पाताल, विदिशागत ४ मध्यम पाताल व उनके मध्य में स्थित १००० जघन्य पाताल हैं उनके भीतर स्थित जल व वायुके विभागोंमें होनेवाले परिवर्तनके साथ उक्त पातालोंके पार्श्वभागोंमें अवस्थित पर्वतों, गौतमद्वीप और २४ अन्तरद्वीपोंका वर्णन करते हुए उनके भीतर अवस्थित कुमानुषोंका स्वरूप दिखलाया गया है । ३. मानुषक्षेत्रविभाग ---- इस प्रकरणमें ७७ श्लोक हैं। यहाँ धातकीखण्डद्वीपकी प्ररूपणामें दो मेह, दो इष्वाकार, दोनों ओरके छह छह कुलपर्वतों व सात सात क्षेत्रोंके अवस्थान और उनके विस्तारादिका वर्णन है । तत्पश्चात् कालोदक समुद्रकी प्ररूपणा करते हुए लवण समुद्रके समान उसके भी भीतर अवस्थित अन्तरद्वीपों और उनमें रहनेवाले कुमानुषोंका विवेचन किया गया है । तत्पश्चात् पुष्कर नामक वृक्षसे चिह्नित पुष्करद्वीपका विवरण करते हुए धातकीखण्डद्वीपके समान वहाँपर अवस्थित मेरु, कुलाचल, इष्वाकार और क्षेत्रोंके अवस्थान व विस्तारादिकी प्ररूपणा की गई है। इस पुष्करद्वीपके भीतर ठीक मध्यमें द्वीपके समान गोल मानुषोत्तर नामका पर्वत अवस्थित है। इससे उक्त द्वीपके दो विभाग हो गये हैं-- अभ्यन्तर पुष्करार्ध और बाहय पुष्करार्ध । अभ्यन्तर पुष्करार्धमें धातकीखण्डद्वीपके समान पर्वत, क्षेत्र और नदियाँ आदि अवस्थित हैं। जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड और अभ्यन्तर पुष्कराध तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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