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-२.३५]
द्वितीयो विभागः
दकश्च दकवासश्चोत्तरस्यां गिरी तयोः । लोहितो लोहिताङकश्च कौस्तुभेन समाश्च ते ।। २९
उक्तं च त्रिलोकप्रज्ञप्तौ [४, २४५७ ]बादाल सहस्साणि जोयणया जलहिदोताहितो।
पविसिय खिदिविवराणं पासेसुं होंति अगिरी' ।। ५ ।। आयुर्वेश्मपरीवारविजयेन समा इमे । स्वस्यां दिशि च जम्ब्वाख्ये तेवां स्युर्न गराणि च ।। ३०
उक्तं च त्रिलोकप्रज्ञप्ती ४, २४७० ]एदाणं देवाणं णयरीओ अवरजं बुदीवम्मि । होंति णियणियदिसाए अवराजिदणयरसारिच्छा ।। ६ द्वादशैव सहस्राणि तटाद् गत्वापरोत्तरे। सहस्र द्वादशाभ्यस्तं विस्तृतः सर्वतः समः ॥३१ नामतो गौतमो द्वीपो देवस्तस्य च गौतमः । स च कौस्तुभवद्वेद्यः परिवारायुरादिभिः ॥ ३२ प्राच्यां दिशि समुद्रेऽस्मिन् द्वैप्या एकोरुका नराः । अपाच्यां सविषाणाश्च प्रतीच्यां च सवालकाः।। अभाषका उदीच्यां च विदिक्षु शशकर्णकाः । एकोरुकनराणां च वामदक्षिणभागयोः ।। ३४ क्रिमेण हयकर्णाश्च सिंहवक्त्राः कुमानुषाः । पूर्वापरे विषाणिभ्यः शष्कुलोकर्णका नराः ॥ ३५
दक और दकवास नामके दो पर्वत उत्तरमें हैं। उनके ऊपर लोहित और लोहितांक नामके देव रहते हैं जो कौस्तुभ देवके समान है ।। २९ । त्रिलोकप्रज्ञप्ति में कहा भी है
समुद्रके दोनों तटोंसे व्यालीस हजार (४२०००) योजन जाकर पातालोंके पार्श्वभागों में आठ पर्वत स्थित हैं ।। ५ ॥
उपर्युक्त पर्वतोंके ऊपर रहनेवाले ये देव आयु, भवन और परिवारकी अपेक्षा विजय देवके समान हैं । जंव नामक द्वीपके भीतर अपनी दिशामें उनके नगर भी स्थित हैं ॥ ३० ॥ त्रिलोकप्रज्ञप्ति में कहा भी है--
___इन देवोंकी नगरियां द्वितीय जद्वीपके भीतर अपनी अपनी दिशामें स्थित हैं । वे नगरियां अपराजित देवकी नगरियोंके समान हैं ।। ६ ।।
समुद्रतटसे बारह हजार (१२०००) योजन जाकर पश्चिम-उत्तर (वायव्य) कोणमें बारह हजार (१२०००)योजन विस्तृत और सब ओरसे समान गौतम नामका द्वीप स्थित है । उसका अधिपति जो गौतम नामका देव है वह परिवार और आयु आदिसे कौस्तुभ देवके समान है, ऐसा जानना चाहिये।।३१-३२।।इस समुद्रके भीतर पूर्व दिशा में रहनेवाले अन्तरद्वीपज मनुष्य एक ऊरुवाले, दक्षिण दिशा में रहनेवाले सींगोंसे सहित, पश्चिम दिशामें रहनेवाले सवालक अर्थात् वालोंसे संयुक्त (पूंछवाले), उत्तर दिशामें रहनेवाले गूगे, तथा विदिशाओंमें रहनेवाले मनुष्य शशकर्ण अर्थात् खरगोशके समान कानवाले होते हैं। इनमें एक ऊरुवाले मनुष्योंके वाम और दक्षिण पार्श्वभागोंमें क्रमसे घोड़ेके समान कानोंवाले और सिंहके समान मुखवाले कुमानुष रहते हैं। सींगवाले मनुष्योंके
१ अठ्ठ होति गिरी। २. कणिकाः ।
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