________________
प्राकृतव्याकरणे
टो डः ॥ १६५ ॥ स्वरात् परस्यासंयुक्तस्यानादेष्टस्य डो भवति । नडो'। भडो। घडो। धडइ। स्वरादित्येव । घंटा। असंयुक्तस्येत्येव। खट्टा। अनादेरित्येव । २टक्को। क्वचिन्न भवति । अटति अटइ।
स्वर के आगे होने वाले, असंयुक्त और अनादि ट का उ होता है। उदा.नडो.... धडइ । स्वर के आगे होने पर ही ( ट का ड होता है; पीछे अनुस्वार होने पर, यह वर्णान्तर नही होता है। उदा०-) घंटा । असंयुक्त होने पर ही ( ट का र होता है। संयुक्त होने पर नहीं होता है। उदा०-) खट्टा । अनादि होने पर ही ( ट का ड होता है; ट आदि हो, तो उसका ड नहीं होता है । उदा.---) टक्को । क्वचित् ( ट का ड ) नहीं होता है । उदा०-अटति अटइ।
सटाशकटकैट मे ढः ॥ १६६ ।। एषु टस्य ढो भवति । सढा । सयढो । केढवो । सटा, शकट, कैटभ शब्दों में ट का ढ होता है। उदा०-सढा..."केढवो ।
स्फटिके लः ॥ १७॥ स्फटिके टस्य लो भवति । फलिहो। स्फटिक शब्द में ट का ल होता है । उदा० –फलिहो ।
चपेटापाटौ वा ॥ १९८॥ चपेटाशब्दे ण्यन्ते पटिधातौ टस्य लो वा भवति । चविला चविडा । फालेइ फाडेइ। ___चपेटा शब्द में और प्रयोजक प्रत्ययान्त पट् धातु में,ट का ल विकल्प से होता है। उदा०-चविला..."फाडेइ ।
ठो ढः ॥ १६६ ॥ स्वरात् परस्यासंयुक्तस्यानादेष्ठस्य ढो भवति । "मढो। सढो। कमढो। कुढारो । पढइ । स्वरादित्येव । वेकंठो । असंयुक्तस्येत्येव । चिट्ठइ' । अनादेरित्येव । हिअए ठाइ। १. क्रम से--नट । भट । घटति । घट। २. खना। ३. टक्क । ४. क्रगसे-मठ ।शठ। कमठ । कुठार । पठति । ५. वैकुण्ठ । ६. तिष्ठति । ७. हृदये तिष्ठति । हेमचद्र के मतानुसार, चिट्ठ और ठा ये धातु स्था धातु के आदेश हैं ( सूत्र ४.१६ देखिए) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org