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प्रथमः पादः
संयोग शब्द की अनुवृति ( इस सूत्र में ) है । ( तब इस सूत्र का होता है - ) आगे संयोग होने पर, आदि इकार का एकार विकल्प से उदा० -- पेण्डं... बिल्लं । क्वचित् ( आगे संयोग होने पर भी इ का ए ) है । उदा० - चिन्ता ।
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किंशुके वा ॥ ८६ ॥
किशुकशब्दे आदेरित एकारो वा भवति । केसुअं किसुअं ।
किशुक शब्द में आदि का एकार विकल्प से होता है । उदा० केसुअं, किसु ।
मिरायाम् ॥ ८७ ॥
मिराशब्दे इत एकारो भवति । मेरा ।
निरा शब्द में इ का एकार होता है । उदा०
अर्थ ऐसा होना है । नहीं होता
- मेरा ।
पथिपृथिवी प्रतिश्रुम्मूषिकहरिद्राविभीतकेष्वत् ॥ ८८ ॥
एषु आदेरितोकारो भवति । पहो । पुहई पुढवी । पडंसुआ । मूसओ । हद्दी हा । बहेडओ । पंथं किर देसितेति तु पथिशब्दसमानार्थस्य पन्थशब्दस्य भविष्यति । हरिद्रायां विकल्प इत्यन्ये । हलिद्दी हलद्दा |
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पथिन्, पृथिवी, प्रतिश्रुत्, मूषिक, हरिद्रा और बिभीतक इन शब्दों में, आदि इ का आकार होता है । उदा० पहो "बहे उभो । 'पन्थं किर देसित्ता' यहाँ तो पथिन् शब्द के समानार्थी होने वाले 'पंथ' शब्द का 'पंथं' ऐसा रूप होगा । कुछ के मतानुसार, हरिद्रा शब्द के बारे में ( इ का अकार होने का ) विकल्प है । उदा०-हलिद्दी, हलद्दा |
शिथिलेङगुदे वा ॥ ८६ ॥
अनयोरादेरितोद् वा भवति । सढिलं पसढिलं सिढिलं पसिढिलं | अंगुअं इंगिअं । निर्मितशब्दे तु वा आत्वं न विधेयम् । निर्मातनिर्मितशब्दाभ्यामेव सिद्धेः ।
शिथिल और इंगुद इन दो शब्दों में, आदि इ का अ विकल्प से होता है । उदा० - सढिलं इंगुअं । परन्तु निर्मित शब्द में मात्र ( इ का ) विकल्प से आ होता है, ऐसा विधान करना नहीं है; कारण 1. निम्माअ और निम्मिअ ये शब्द ) निर्मात और निर्मित इन शब्दों से सिद्ध होते हैं ।
१. पन्थं किल देशित्वा ।
२. प्रशिथिल ।
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