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प्राकृतव्याकरणे
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आर्द्र शब्द में आदि आ के उ और ओ विकल्प से होते हैं । उदा. --~-उल्लं,मोल्लं। (विकल्प ) पक्ष में-भल्लं...."उल्लेइ ।
ओदाल्यां पङ्क्तौ ॥ ८३ ॥ आलीशब्दे पङ्क्तिवाचिनि आत ओत्वं भवति । ओली। पङ्क्ताविति किम् । आली सखी।
__ आली शब्द में, पंक्ति अथ' होने पर, आ का ओ होता है । उदा-ओली । पंक्ति ( अब होने पर ) ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण पंक्ति अर्थ न होने पर, आ का मओ नहीं होता है । उदा.-) आली ( यानी ) सहेलो ।
हस्वः संयोगे॥ ८४ ॥ दीर्घस्य यथादर्शनं संयोगे परे ह्रस्वो भवति । आत् । आभ्रभ अम्बं । ताभ्रम् तभ्बं । विरहाग्निः विरहग्गी । आस्यम् अस्सं । ईत् । मुनीन्द्रः मणिन्दो। तीर्थम् तित्थं । ऊत्। गुरूल्लापाः गुरुल्लावा। चूर्णः चुण्णो । एत् । नरेन्द्रः नरिन्दो। म्लेच्छ: मिलिच्छो । दिठ्ठिक्क-थणा-वळं । ओत् । अधरोष्ठः अहरुठं । नीलोत्पलम् नीलुप्पलं । संयोग इति किम् । आयासं । ईसरो। ऊसवो।
(साहित्य में ) जैसा दिखाई देता है वैसा, संयुक्त व्यंजन आगे होने पर, (पिछले) दीर्घ स्वर का-हस्व स्वर होता है। उदा०-आ ( के आगे संयोग होने परआम्र....'अस्सं । ई (के आगे संयोग होने परः-- ) मुनीन्द्रः...."नित्यं । ऊ (के आगे संयोग होने परः-) गुरुल्लापा:: "चुण्णो । ए (के आगे संयोग होने पर-) नरेन्द्रः."बळें । ओ ( के आगे संयोग होने पर - ) अधरोष्ठः..."मीलप्पलं । ( आगे ) संयोग ( = संयुक्त शंभन ) होमे पर, ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण आगे संयोग न हो, तो पिछला बीर्घ स्वर-वस्थ नहीं होता है । उदा.- ) आया; ( तथा आगे आने वाले संयुक्त व्यंजन में से एक अवयव का लोप किया हो, तो भी पिछला दोघं स्वर-हस्व नहीं होता है : उदा.-) ईसर, ऊसब ।
___ इस एद्वा ॥ ८५॥ संयोग इति वर्तते। आदेरिकास्य संयोगे परे एकारो परे वा भवति । पेण्ड पिण्डं । धम्मेल्लं धम्मिल्लं । सेन्दूरं सिन्दूरं । वेण्ट विण्ट । पेटठं पिटठं । बेल्लं बिल्लं । क्वचिन्न भवति । चिन्ता ।
१. टेक-स्तन-पृष्ठभ् । २. क्रम से-आयास ( आकाश)। ईश्वर । उत्सव । ___३. क्रम से-पिण्ड । धम्मिल्ल । सिन्दूर। विष्णु । पृष्ठ । बिल्व ।
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