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________________ प्रथमः पाद: आर्या शब्द में, सास अर्थ वाच्यार्य होने पर, से संपृक्त रहने वाले मा का ऊ होता है। उदा०-अज्जू । सास ( अर्थ वाच्या होने पर ) ऐसा क्यों कहा है ? (कारक यदि सास अर्थ वाच्य न हो, तो आ का ऊ नहीं होता है । उदा.-)मज्जा । एद् ग्राह्य ।। ७८ ॥ ग्राह्यशब्दे आदेरात एत् भवति । गेज्झं । ग्राह्य शब्द में आदि आ का ए होता है । उदा०---गेझं । द्वारे वा ॥ ७६ ॥ द्वारशब्दे आत एद् वा भवति । देरं । पक्षे। दुआरं दारं बारं । कथंनेरइओ नारइओ। नैरयिकनारयिकशब्दयोभविष्यति । आर्षे अन्यत्रापि । 'पच्छे कम्भं । असहेज्ज२ देवासुरी। द्वार शब्द मे आ का ए विकल्प से होता है। उदा०-देरं । ( विकल्प ) पक्ष में आरं..'बारं । नेरइओ ओर नारइभो रूप कैसे होते हैं ? ( उत्तरः---) नरयिक और नारकिक ( शब्दों) के ( ये रूप ) होंगे। आर्ष प्राकृत में अन्य शब्दों में भी ( आ का ए होता है। उदा.-पच्छेकम्भं...''देवासुरी। पारापते रो वा ।। ८०॥ पारापतशब्द रस्थस्यात एद् वा भवति । पारेवओ पारावओ। पारापत शब्द में र् से संपृक्त रहने वाले आ का ए विकल्प से होता है । उदा०पारेवओ, पारावओ। मात्रांट वा ॥ ८१॥ मात्रटप्रत्यये आत एद् वा भवति । एत्तिअमेत्तं एत्ति अमत्तं । वहलाधिकारात् क्वचिन्मात्रशब्दपि । भो 'अणमेत्तं। मात्र ( मात्रट ) प्रत्यय में आ का ए विकल्प से होता है। उदा.-एत्तिअमेत्तं, एत्तिममत्तं । बहल का अधिकार होने से, क्वचित् मात्र शब्द में भी ( आ का ए होता है । उदा०-) भोमणमेत्तं । उदोद् वाने॥ ८२॥ आर्द्रशब्दे आदेरात उद् ओच्च वा भवतः। उल्लं ओल्लं । पक्षे। अल्लं अदं । बाहसलिलपवहेण” उल्लेइ । १. पश्चात्कर्म । २. असहापदेवासुरी। ३. इयन्मान। ४. भोजनमात्र । ५. बाष्प-सलिल-प्रवाहेण आद्रयति ( आर्दीकरोति)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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