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प्राकृतव्याकरण- चतुर्थपाद
यहाँ "झलक्किम में से झलक्क धातु तापय् धातु का आदेश है । चडल्लउ --सूत्र ४४२९-४३० देखिए । झलक्क -- मराठी में झलकणे । प्रिया ) दो पग चल कर लौट आए, तब सर्वं खाने -वाले ( अग्नि ) का जो शत्रु ( यानो पानी, समुद्र ), उससे उत्पन्न हुआ जो चन्द्र, उसके किरण परावृत्त होने लगे ( चन्द्र का अस्त होने लगा ) ।
श्लोक ३ -- जब प्रेम (
आदेश है । अभडवंअनुसार यावत् शब्द का
यहाँ अब्भडवंचिउ में अब्भडवंच धातु अनुगम् धातु का चिउ--सूत्र ४ ४३९ देखिए | जावं - - सूत्र ४४०६ के जाम ऐसा वर्णान्तर होता है; फिर सूत्र ४ ३९७ के अनुसार जावँ होता है । सव्वासरिउ सम्भव -- सर्वाशन यानी सर्वभक्षक अग्नि, यहाँ वडवानल; उसका शत्रु पानी यहाँ समुद्र; उस समुद्र से उत्पन्न हुआ चन्द्र । तावं - - सूत्र ४४०६, ३९७ देखिए ।
श्लोक ४ - - हृदय में सुन्दरी शल्य के समान चुभती है; गगन में मेघ गरज रहा है; वर्षा ( ऋतु ) की रात में प्रवासियों के लिए यह महान् संकट है ।
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यहाँ खुसुक्क धातु झल्यायते का और घुडुक्कर धातु गर्जति का आदेश है । गोरडी--सूत्र ४'४२९, ४३१ देखिए । खुडुक्कइ - - मराठी में खुडुक होऊन बसणे । "पवासुअ - - सूत्र १४४ देखिए ।
एहु - सूत्र ४०३६२ देखिए ।
श्लोक ५ - हे अम्मा, ( ये मेरे ) स्तन वज्रमय हैं; ( कारण ) वे नित्य मेरे प्रियकर के सामने होते हैं, और समरांगण में गजसमूह नष्ट करनेके लिए जाते हैं । आदेश है । भज्जिउ-- सूत्र ४·४३९ के यहाँ हेत्वर्थक धातुसाधित अव्यय के रूप
यहाँ यन्ति में थ धातु स्था धातु का अनुसार होने बाला यह पू० का० ध० अ० प्रयुक्त किया है ।
में
श्लोक ६--- यदि बापकी भूमि ( संपत्ति ) दूसरेके द्वारा छीन ली जाय, तो पुत्र के जन्म से क्या लाभ / उपयोग ? और उसके मरने से क्या हानि ?
यहाँ चंपिज्जइ में चंप धातु आक्तम् धातु का आदेश है । बप्पीकी - बप्प - ( देशी शब्द ) - बाप । चंप - मराठी में चापणे ।
श्लोक ७ – सागरका वह उतना जल और वह उतना विस्तार । परंतु थोडी भी तृषा दूर नहीं होती । पर वह व्यर्थ गर्जना करता है ।
यहाँ घुट्टुअइ धातु शब्दायते धातु का आदेश है | ( यहाँ धुधुअइ ऐसा भो पाठभेद है ) । तेत्तिउ - सूत्र २०१५७ देखिए ।
तेवडु – सूत्र ४४०७ देखिए ।
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