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________________ टिप्पणियाँ ४*३९६ क्ष्लोक १. (- जब कुलटाओं ने/असतियों ने चंद्रग्रहणको देखा तब वे निःशंक रूप से हँस पड़ी ( और बोली ) प्रिय मानुष को विक्षुब्ध करने वाले चन्द्रको, हे राहु, निगल ( रे ) निगल । ४०६ यहाँ विच्छाहरु शब्द में क का ग हुआ है । गिलि - सूत्र ४९३८७ देखिए । श्लोक २ - हे अम्मा, आराम में रहने वाले ( मनुष्यों ) से मान का विचार किया जाता है | परन्तु जब प्रियकर दृष्टिगोचर होता है, तब व्याकुलत्व के कारण अपना विचार कौन करता है ? यहाँ सुधि में ख का ध हुआ है । सुधि - सूत्र ४३४२ के अनुसार होने वाले सुधें वर्णान्तर में सूत्र ४४५० के अनुसार उच्चार लाघव होकर सुधि रूप हुआ है । हल्लोहल ( देशी ) -- व्याकुलता । श्लोक ३ --- शपथ लेके मैंने कहा - जिसका त्याग ( = दानशूरता ), पराक्रम ( आरभटी ) और धर्म नष्ट नहीं हुए हैं उसका जन्म संपूर्णतः सफल हुआ है । यहाँ सबघु में पका व और थ का ध, कधिदु में थ का ध और त का द, और सभलउँ में फ का भ हुए हैं । करेप्पिणु – सूत्र ४ ४४० देखिए । पम्हट्ठउ--सूत्र ४ २५८ देखिए । श्लोक ४ -- यदि कथंचित् मैं प्रियकर को प्राप्त कर लूं, तो पहले ( कभी भी) न किया हुआ ऐसा ( कुछ ) कौतुक मैं कर लूं, नये कसोरे में जैसे पानी सर्वत्र प्रविष्ट होता है वैसे मैं सर्वाग से ( उस प्रियकर में ) प्रविष्ट होऊँगी | यहाँ अकिआ, नवइ शब्दों में क का ग नहीं हुआ है । ४°४-२ ) में से ओ ह्रस्व होकर कुड्ड वना है । करीसु देशिए । श्लोक ५ – देख, सुवर्ण कान्तिके समान चमकने वाला कणिकार वृक्ष प्रफुल्लित हुआ है । मानो सुंदरी के मुख से जीते जाने के कारण बह वन में रहता है (शब्दशः - वनवास सेवन कर रहा है ) । - कुड्ड —कोड़उ ( सूत्र पइसीसु — सूत्र ४३८८ यहाँ पफुल्लिअर में फ का भ, 'पयासु में क का ग, और विणिज्जिमउ में त का द नहीं हुए हैं । उअ - सूत्र २२११ देखिए । ४-३१७ मराठी में भी म का व होता है । उदा० -ग्राम-गाव, नाम-नाय इत्यादि । भवरु-हिंदी में भँवर । जिवँ तिवँ जेवँ तेवँ - जिम, तिम, जेम, तेम ( सूत्र ४४० १ देखिए ) | ४·३६८ जइ· ···पिउ - यहाँ पिउ में रेफ का लोप हुआ है । जइ भग्गा... प्रियेण - यहां प्रियेग में रेफ का लोप नहीं हुआ है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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