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४.४
टिप्पणियां
४.८६ क्रिये--कृ धातु के कमणि अंग में वर्तमानकाल प्रथम पुरुष एकवचन ।
श्लोक १--विद्यमान भोगों का जो त्याग करता है उस प्रियकर की मैं पूजा करती हूँ। जिसका मस्तक गंजा है उसका मुंडन तो देव ने ही किया है। ___ यहां क्रिये शब्द को कोसु आदेश है। साध्यमानावस्था-सूत्र ११ ऊपर को टिप्पणी देखिए।
४.६९० श्लोक १-स्तनों का जो आतंतुंगत्व ( = अत्यन्त ऊँचाई ) है, वह लाभ न होने से हानि ही है । ( कारण ) हे सखि, प्रियकर बहुत कष्ट से और देर से ( मेरे ) अधर तक पहुँचता है।
यहाँ पहुच्चइ शब्द में भू धातु को हुच्च आदेश है । हु-सूत्र २.१९८ देखिए । ४३६१ ब्रुवह .. किंपि-यहाँ ब्रुवह रूप में ब्रुव आदेश है ।
श्लोक १-( श्री कृष्णकी उपस्थिति से दुर्योधन कितना असमंजस में पड़ा था ( = भौंचक्का हो गया था ) उसका वर्णन इस श्लोकमें है। दुर्योधन कहता है :-) इतना कहकर शकुनि चुप रहा; फिर ( उतना ही वोलकर दुःशासन चुप हो गया; तब मैंने समझा कि (जो बोलना था वह ) बोलकर यह हरि ( श्रीकृष्ण ) मेरे आगे ( खड़ा हो गया )।
यहाँ ब्रू धातु के ब्रोप्पिण और ब्रोप्पि ऐसे रूप हैं। इत्तउ-इयत् शब्द को सूत्र २.१५७ के अनुसार एत्तिअ आदेश हुआ; सूत्र १.८४ के अनुसार ए ह्रस्व हो गया; फिर ह्रस्व ए के बदले इ आकर इत्तिा रूप हुआ; अनन्तर सूत्र ४.३२६ के अनुसार इत्तउ हो गया । ब्रोप्पिणु, ब्रोप्पि--सूत्र ४°४४० देखिए ।
४.३९२ वुप्पि ; वुप्पिणु--सूत्र ४१४४० देखिए । ४ ३९४ गृण्हेप्पिणु--सूत्र ४०४४० देखिए ।
४.३६५ श्लोक १--कुछ भी ( शब्दश:--जैसे तैसे ) करके यदि तीक्षण किरण बाहर निकालकर चन्द्रको छोला जाता, तो इस जगमें गौरोके ( सुन्दरीके ) मुखकमलसे थोड़ासा सादृश्य उसे मिल जाता ।
यहाँ छोल्लिज्जन्तु में छोल्ल धातु तक्ष धातु का आदेश है। छोल्लिज्जन्तुछोल्ल ( मराठी में सोलणे) के कर्मणि अंगसे बना हुआ व. का. धा० वि० । सरिसिम--सूत्र २.१५७ के अनुसार बना भाववाचक नाम है।
श्लोक २- हे सुन्दरि, गाल पर रखा हुआ, ( गर्म ) सांसरूपी अग्नि की ज्वालाओं से तप्त हुआ और अश्रुजल से भीगा हुआ कंगन ( कंकण ) अपने आप ही (स्वयं ही , चूर-चूर होता है ।
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