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________________ ३८८ टिप्पणियां श्लोक २-( अपने ) स्वामी के गुरु भार को देखकर, धवल ( बैल ) खिन्न होता है ( = खेद करता है, और अपने को कहता है ) कि मेरे दो टुकड़े करके ( जोते की ) दो बाजुओं को मुझे क्यों नहीं जोता गया है ? यहाँ दुहुँ इस सप्तमी अनेकवचन में हैं आदेश है। विसूरइ- विसूर धातु खिद् धातु का आदेश है ( सूत्र ४.१३२ देखिए)। पिक्खे वि, करेवि-सूत्र ४.४४० देखिए । दुह-प्राकृत में द्विवचन न होने के कारण यह अनेकवचन प्रयुक्त है। दिसिहि-सूत्र ४.३४७ देखिए । खण्ड-सुत्र ४३५३ देखिए । ४.४५ श्लोक १-किसी भी भेदभाव के बिना ( अरण्य में ) पर्वत की शिला और वृक्षों के फल मिलते हैं ( शब्दशः–लिए जाते हैं ); तथापि घर का त्याग करके अरण्य ( वास ) मनुष्यों को रुचता नहीं। यहाँ गिरिहे और तरुहें इस पञ्चमी एकवचन में हे आदेश है । नीसावन्नुसूत्र ४.३९७ देखिए । मेल्लेप्पिणु-सूत्र ४४४० देखिए । माणुसहं-सूत्र ४ ३३९ देखिए। श्लोक २-तरुओं से वल्कल परिधान के रूप में और फल भोजन के स्वरूप में मुनि भी प्राप्त कर लेते हैं। ( वस्त्र और भोजन के साथ ही) सेवकजन स्वामियों से आदर ( यह ज्यादा बात ) प्राप्त कर लेते हैं । यहाँ तरुहुँ और सामिहु इन पञ्चमी अनेकवचनों में हु आदेश है । एत्तिउसत्र २.१५७;४.३३१ देखिए । अग्गलउ-मराठी में आगला । सूत्र ४.४५४ देखिए । श्लोक ३-अब कलियुग में धर्म (सचमुच ) कम प्रभावी हो गया है । यहाँ कलिहि इस सप्तमी एकवचन में हि आदेश है। जि-सूत्र ४४२० देखिए। ४.३४ टा-वचनस्य....."भवतः-सूत्र ४.३३३ के अनुसार टा प्रत्यय के पूर्व शब्द के अन्त्य अकार का ए होता है। उदा०-दइअ-दइए। अब, प्रस्तुत सूत्र के अनुसार, टा प्रत्यय को ण अथवा अनुस्वार आदेश होते हैं। इसलिए दइएं पवसन्तेण, इत्यादि रूप होते हैं। ४.३४३ श्लोक १–जग अग्नि से उष्ण और वायु से शीतल होता है। परन्तु जो अग्नि से भी शीतल होता है, उसकी उष्णता कैसे ? ( अर्थात् वह गम नहीं होता है)। यहाँ अग्गिएँ इस तृतीया एकवचन में एं है, और अग्गि में अनुस्वार है। तेवं केव--सूत्र ४०४०१, ३९७ देखिए। उण्हत्तणु-सूत्र २.१५४ के अनुसार तण प्रत्यय लगकर भाववाचक संज्ञा बनी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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