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प्राकृतव्याकरण-चतुर्थपाद
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श्लोक २-यद्यपि प्रियकर अप्रिय करने वाला है, तथापि आज उसे ला। यद्यपि अग्नि से घर जल जाता है तथापि उस अग्नि से ( अपना ) कार्य होता ही है। ___ यहाँ अग्गिण में ण और अग्गि में अनुस्वार है । तें-त ( तद् ) सर्वनाम का तृतीया एकवचन ।
४३४४ एइ... ..."थलि-यहाँ 'एह थलि' शब्दों में सि प्रत्यय का, वग्ग में अम् प्रत्यय का, और ‘एइ घोडा' शब्दों में जस् प्रत्यय का लोप हुआ है ।
श्लोक १-जैसे जैसे श्यामा स्त्री आँखों के बांकापन ( वक्र, कटाक्ष, फेंकना) सीखती है, वैसे वैसे मदन कठिन पत्थर पर अपने बाणों को तीक्ष्ण करता है ( = ज्यादा धार लगाता है)।
यहाँ सापलि में सि प्रत्यय का, वंकिम में अम् प्रत्यय का, और सर में शस् प्रत्यय का लोप हुआ है। जिव जि तिवं तिव--सूत्र ४०४०१, ३९७ देखिए। वम्महु--सूत्र १.२४२ देखिए ।
४.३४५ श्लोक १--सैकड़ों युद्धों में, अत्यन्त मत्त, और अंकुशों की भी पर्वाह न करने वाले ऐसे हाथियों के गण्डस्थलों को फोड़ने वाला इस स्वरूप में जिसका वर्णन किया जाता है, उसे हमारे ( मेरे ) प्रिय करको देखो।
यहाँ गय शब्द के आगे षष्ठी अनेकवचनी प्रत्यय का लोप हुआ है। जु--ज ( यद् ) सर्वनाम का प्रथमा एकवचन । देक्खु--सूत्र ४.३८७ देखिए । अम्हारा-- सूत्र ४४३४ देखिए।
पृथग्योगो... .."सारार्थः--सूत्र ४३४४ में ही आम् प्रत्यय कहा होता, तो प्रस्तुत सूत्र स्वतन्त्र रूप से कहना जरूरी नहीं था। फिर वैसा क्यों नहीं किया ? इस प्रश्न का उत्तर यहाँ है :-व्याकरणीय नियमों के उदाहरणों के अनुसार उचित विभक्ति का लोप है यह जाना जाय, यह सूचित करने के लिए प्रस्तुत सूत्र का नियम सूत्र ४.३४४ के पृथक रूप से कहा है।
४.३४६ आमन्त्र्ये... .. जसः--सम्बोधन स्वतन्त्र विभक्ति नहीं है। प्रथमा विभक्ति के प्रत्यय ही सम्बोधन विभक्ति में लगते हैं। किन्तु वे लगते समय उनमें थोड़े फर्क हो जाते हैं।
श्लोक १-हे तरुणो और हे तरुणियों, मैंने समझ लिया; अपना घात मत करो।
यहाँ तरुणहो और तरुणिहो इन सम्बोधन अनेकवचनों में हो आदेश है। करह-सूत्र ४.३८४ देखिए । म-सूत्र ४.३२९ के अनुसार स्वर में बदल हुआ है।
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