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________________ प्राकृतव्याकरण-तृतीयपाद ३०१ अ०व० पुरुष ए. व. द्वि० पु. भणिहिसि. भणेहिसि; भणिहित्या, भणेहित्था; भणिहिसे, भणेहिसे भणिहिह, मणेहिह तृ• पु० भणिहिइ, भणेहिइ; भणिहिन्ति, भणेहिन्ति; भाणिहिन्ते, भणेभणिहिए, भणेहिए हिन्ते, भणिहि इरे, भणेहि इरे __ भविष्यकाल : हो धातु पुरुष ए० व. अ०व० प्र. पु० होस्सं होस्सामि, होस्सामो, होस्साम, होस्सामु; होहामो, होहामि, होहिमि होहाम, होहामु; होहिमो, होहिम, होहिम होहिस्सा, होहित्था द्वि० पु. होहिसि होहित्था, होहिह तृ• पु० हो हिइ होहिन्ति, होहिन्ते, होहिइरे ३.१६६ भविष्यति भविता-- संस्कृत में भविष्य काल में भू धातु के स्थ और ता भविष्य काल के रूप हैं । हसिहिइ-भविष्य कालीन प्रत्यय के पूर्व धातु के अन्त्य अ के इ और ए होते हैं । उदा--हसिहिइ, हसेहिइ । ३.१६७ मविष्यत्यर्थे... ..'प्रयोक्तव्यो-मि, मो, मु और म इन प्रत्ययों के पूर्व विकल्प से स्सा और हा आते हैं । तृतीय त्रिक-तृतीय त्रय ( सूत्र ३.१४२ देखिए ), प्रथम पुरुष के तीन वचन । ३.१७० कर : कृ) और दा धातुओं के भविष्यकाल प्रथम पुरुष एक वचन में काहं और दाहं ऐसे दो रूप अधिक होते हैं । करोते:- करोति (कृ)। काहं-भविष्य कालीन प्रत्ययों के पूर्व, सूत्र ४२१४ के अनुसार, कृ धातु का होता है। ३१७१ श्रु इत्यादि धातुओं के सोच्छं इत्यादि रूप भविष्यकाल प्रथम पुरुष एक वचन के हैं। ३.१७२ श्रु इत्यादि धातुओं के भविष्य काल में सोच्छ इत्यादि अंग होते हैं। उनको केवल वर्तमान काल के प्रत्यय लगा कर ही उनका भविष्य काल सिद्ध होता है। उदा०-सोच्छिइ । उनको भविष्यकाल के प्रत्यय भी लगते हैं। उदा०-सोच्छिहिइ । ___३.१७३-१७६ इन सूत्रों में आज्ञार्थ ( विध्यर्थ ) का विचार है। उसके प्रत्यय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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