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टिप्पणियाँ
है, वह दिखाने के लिए ठिअंशब्द प्रयुक्त किया गया है । ठि अं का ऐसा उपयोग आगे सूत्र ३.२९, १०१, ११५-११६, १२९ में है । 'जलोल्लि आई-जल + उल्लियाई।
___३.१७ चतुर उदन्तस्य-उ ( उत् ) से अन्त होने वाले चतुर् शब्द का यानी चतुर् शब्द के च उ इस अंग का।
१८ गिरिणो तरुणो-सूत्र ३.२२ देलिए । जस् शस्... .. निवृत्त्यर्थम्जस शस् ( सूत्र ३.१२) इस सूत्र से, शस् प्रत्यय के सन्दर्भ में वाङ्मयनि उदाहरणों के अनुसार दीर्घ होता है यह नियम कहने का है । 'जस् शसोर्गो वा' ( सूत्र ३.२२) यह सत्र शस् को णो आदेश कहता है । इसलिए णो के बारे में प्रतिप्रसव का अर्थ है, ऐसो शंका यदि हो, तो वह मिटाने के लिए 'लुप्ते शसि' यह प्रस्तुत सूत्र कहा है । प्रतिप्रसव–एकाध नियम के कहे हुए अपवाद का अपवाद (यानी मूल नियम की कार्यवाही ) यानी प्रतिप्रसव ।
३.१९ अक्लीबे-नपुंसकलिंग न होने पर।
३.२० इदुत... ... सम्बध्यते--सूत्र ३.१६ में इदुतः ऐसा षष्ठयन्त पद है। वह अनुवृत्ति से प्रस्तुत ३.२० सूत्र में आता ही है। केवल यहां वह षष्ठयन्त न रहने, आवश्कता के अनुसार पञ्चम्यन्त भी होता है। इसलिए यहाँ इदुतः ऐसे पञ्चम्यन्त पद का सम्बन्ध प्रस्तुत सूत्र में है। पंसि-पुल्लिग में। अउ डितौ-सूत्र में से डउ और डओ पदों का अनुवाद; अर्थ है-डित् होने वाले अउ और अओ ये आदेश । अग्गउ... ... ...चिट्ठन्ति-पिछले शब्दों का प्रथमा अनेक वचन दिखाने के लिए चिट्ठन्ति शब्द प्रयुक्त किया है, और चिट्ठइ का ऐसा उपयोग ३.५९ में, और चिट्ठह का उपयोग सूत्र ३.९१ में है। पक्षे "वा उणो-सूत्र ३.२२ देखिए । शेषे... .."वाऊ-सूत्र ३.१२४ देखिए । बुद्धीओ घेणूओ-सूत्र ३.२७ देखिए । दहीइं महूई-सूत्र ३.२६ देखिए ।
३.२१ डित् अवो-ये शब्द सूत्र में से डवो शब्द का अनुवाद् हैं। सहुणोसूत्र ३.२२ देखिए।
३.२२ गिरिणो.. .."'रेहन्ति पेच्छ--रेहन्ति और पेच्छ ये शब्द पिछले शब्द अनुक्रम से प्रथमान्त और द्वितीयान्त हैं यह दिखाते हैं।
३.२३ गिरिणो आगओ विआरो--पिछले शब्दों की पंचमी अथवा षष्ठी दिखाने के लिए आगओ और विआरो शब्द प्रयुक्त हैं।
हिलुको निषेत्स्येते--इकारान्त और उकारान्त शब्दों के बारे में उसि प्रत्यय के लुक् और हि इन आदेशों का निषेध आगे सूत्र ३.१२६-१२७ में किया जाएगा।
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