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प्राकृतव्याकरण- तृतीयपाद
३.८ दो दु - इस स्वरूप में ये प्रत्यय शौरसेनी भाषा में प्रयुक्त किए जाते हैं । इसलिए 'दकार करणं भाषान्तरार्थम्' ऐसा हेमचन्द्र ने आगे कहा है । प्राकृत में मात्र ये प्रत्यय ओ और उ इन स्वरूपों में लगते हैं ।
वच्छत्तो— सूत्र ३·१२ के अनुसार होने वाले दीर्घ स्वर का ह्रस्व स्वर यहाँ सूत्र १.८४ के अनुसार होता है । वच्छाओ " "वच्छा - सूत्र ३·१२ देखिए ।
३.९ भ्यसः - प्राकृत में चतुर्थी विभक्ति न होने से, यहाँ भ्यस् शब्द से पञ्चमी बहुवचन का भ्यस् प्रत्यय अभिप्रेत है । दो दु--सूत्र ३.८ ऊपर की टिप्पणी देखिए । वच्छाओ... वच्छे सुंतो - सूत्र ३.१३, १५ देखिए ।
३.१० संयुक्तः सः —– संयुक्त स यानी स्स ।
३.११ डित् सकारः - ये शब्द सूत्र में से डे शब्द का अनुवाद करते हैं ।
संयुक्तो मि:- संयुक्त मियानी म्मि । देवं
ङिः – यहाँ देवे देवेम्मि, ਰੇ तमि ऐसे सप्तमो एकवचन के रूप न देते, देवं तम्मि ऐसे रूप दिए हैं । उनमें देवं और तं ये रूप द्वितोया एक वचन के हैं । इसलिए यहाँ सूत्र ३.१३५ के अनुसार; अम् के स्थान पर ङि है ऐसा समझना है ।
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३.१२ ङसिर्नव एत्वबाधनार्थम् - प्रस्तुत सूत्र में ङसि ऐसा कहा है । ङसि शब्द से त्ता, दो और दु ये आदेश सूत्र ३.८ के अनुसार संगृहीत होते ही हैं । फिर पुनः इस सूत्र में तो, दो, और दु ये आदेश क्यों कहे हैं ?
उतर - तो, दो और दु ये आदेश सूत्र ३.६ के अनुसार भ्यस् प्रत्यय को भी होते हैं । भ्यस् प्रत्यय के पूर्व शब्द के अन्त्य अ का ए होता है ( सूत्र ३.१५ देखिए ); इस ए का बाधत्ता, दो, और दु इन प्रत्ययों के पूर्व तो, यह बताने के लिए तो, दो और दु इनका निर्देश प्रस्तुत सूत्र में किया है ।
३.१३ वा भवति - विकल्प पक्ष में सूत्र ३.१५ लगना है । ३. १४ वच्छेसु – 'सु' यह सप्तमी अनेक वचन का प्रत्यय है । ३.१६ गिरीहिं. "महूहि कथं – पिछले शब्द तृतीया विभक्ति में हैं, यह दिखाने के लिए कयं शब्द प्रयुक्त किया है । कयं का ऐसा उपयोग आगे सूत्र ३.२३, २४, २७, २९; ५१, ५२, ५५, १०९ – ११०, १२४ में है । गिरीओमहूहो आगओ - पिछले शब्द पञ्चमी विभक्ति में हैं, यह सूचित करने के लिए आगओ शब्द प्रयुक्त किया है । आगओ का ऐसा उपयोग आगे सूत्र ३.२९, ३०, ५०, ९७, १११, १२४ में है । गिरीसु महूसु ठिअं-पिछले शब्द सप्तमी विभक्तयन्त है
२३ प्रा० व्या०
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