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प्राकृतव्याकरण-तृतीयपाद
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बुद्धीअ... ''समिद्धी-पिछले शब्दों की तृतीया और षष्ठी लद्ध और समिद्धी इन शब्दों से सूचित होती है।
३.२५ स्वरादिति .. .. निवृत्त्यर्थम्---सूत्र ३.१६ में से इदुतः पद की अनुवृत्ति चालू है ही; तथापि वह प्रस्तुत ३.२५ सूत्र में आवश्यक नहीं है; इसलिए इदुतः पद की निवृत्ति करने के लिए प्रस्तुत सूत्र में 'स्वरात्' ऐसा शब्द प्रयुक्त किया है।
३.२६ उन्मौलन्तिः .. .. जेम वा--पिछले शब्दों की प्रथमा अथवा द्वितीया दिखाने के लिए यहां के क्रियापद प्रयुक्त हैं ।
३.२८ एसा हसन्तीआ--हसन्तीआ शब्द का प्रथमा एकवचन सूचित करने के लिए 'एसा' शब्द प्रयुक्त किया गया है।
३.२९ मुद्धाअ... .."ठिअं--कयं, मुहं और ठिअं ये शब्द अनुक्रम से तृतीया, षष्ठी और सप्तमी दिखाने के लिए प्रयुक्त हैं। मुद्धा आ ऐसा रूप न होने के कारण सूत्र ३.३० में दिया है। क--प्रत्यये... ... ..'कमलि आए--स्वार्थे क प्रत्यय लगाने के बाद मुद्धा शब्द का मुद्धिआ और कमला शब्द का कमलिआ ऐसा रूप होता है। बुद्घीअ .. .."ठिअंबा--यहाँ कयं शब्द तृतीया दिखाने के लिए, ठियं शब्द सप्तमी सूचित करने लिए और विहवो, धणं, दुद्धं तथा भवणं ये शब्द षष्ठी दिखाने के लिए प्रयुक्त हैं।
३.३० मालाअ... .. आ--कयं, मुहं, ठिअं और आगओ ये शब्द माला शब्द की अनुक्रम से तृतीया, सप्तमी और पंचमी दिखाते है।
३.३१ डी:--ई (डी) प्रत्यय । आप्--आ (आप) प्रत्यय । ई और आ प्रत्यय लगाकर स्त्रीलिंगी रूप सिद्ध किए जाते हैं। उदा०--साहण ( साधन )--साहणी; साहणा।
३.३३ किम् यद्, तद् इन सर्वनामों के स्त्रीलिंगी अंग प्रायः का; जा और ता ऐसे होते हैं। सि, अम्, आम् ये प्रत्यय छोड़कर, अन्य प्रत्ययों के पूर्व उनके स्त्रीलिंगी अंग की; जी, ती, ऐसे दीर्घ ईकारान्त होते हैं ।
३.३५ डा-डित् आ। ससानणन्दा दुहिआ-प्राकृत में ऋ और ऋ स्वर नहीं है; इसलिए स्वसू, ननन्द, दुहित इन ऋकारान्त शब्दों को डा प्रत्यय जोडा जाता है। गउआ-गवय शब्द को डा प्रत्यय लगा है।
३.३८ चप्फलया-मिथ्या भाषी इस अर्थ में चप्फल/चष्फलय शब्द देशी है। ३.३६ हे पिअरं-सूत्र ३० देखिए । ३.४१ अम्मो-अम्मा यह देशी शब्द माता अर्थ में है ।
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