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टिप्पणियां
होता है। स्थितिपरिवृत्तौ--स्थितिपरिवृत्ति होने पर । स्थितिपरिवृत्ति यानी वर्ण व्यत्यास, वर्ण व्यत्यय अथवा शब्द में वर्गों के स्थानों की अदला-बदली। इस स्थितिपरिवृत्ति के लिए सूत्र २.११६.१२४ देखिए । वोद्रहीओ---वोद्रही ( देशीतरुणी ) शब्द का प्रथमा अनेकवचन । वोद्रह---(देशा) तरुण (तारुण्य) ।
२.८६ ह्रस्वात् 'धाई-धात्री शब्द से धार्थ वर्णान्तर कैसे होता है वह यहाँ कहाँ है। रेफ का लोप होने के पहले, (धत्रो में से ध इस ) ह्रस्व स्वर से (बा ऐसा दीर्घ स्वर होकर ) धाई शब्द बना है। इस सन्दर्भ से सूत्र २.७: देखिए । सच कहे तो यहाँ सूत्र २.८८ में से राई शब्द के समान प्रक्रिया होती है, ऐसा कहा जा सकता है। ___२.८२ निक्खं--मराठी में तिख (ट)। हिंदी में तीखा । तोक्ष्ण शब्द में से ण् का लोप होकर सूत्र २.३ के अनुसार क्ष का क्ख हुआ है। तिण्हं-तीक्ष्ण में से क् का लोप ( सूत्र २.७७ के अनुसार ) होने के बाद, सूत्र २०७५ के अनुसार पण का पह हुआ है।
२.८३ ज्ञः संबंधिनो "लुग-~-ज्ञसे ( ज्ञ - ++अ ) संबंधित होने वाले न का लोप । सव्वण्ण-इस समान शब्दों में से ज्ञ के पण के लिए सूत्र १.१५५देखिए ।
२८४ मज्झण्हो--ह के लिए सूत्र २.७५ देखिए ।
२.८५ पृथग्योगाद्... ... निवृत्तम्--सुत्र २८० में विकल्प-बोचक 'वा' शब्द है। उसको अनुवृत्ति अगले २.८१-८४ सूत्रों में है। अब सच कहे तो इस २.८५ सूत्र में कहा हुआ दशाह शब्द सूत्र २.८४ में ही कहा जा सकता था; परन्तु वैसा न करके, दशाह शब्द के लिए सूत्र २.८५ यह स्वतन्त्र सूत्र कहा है। इसका कारण सत्र २.८४ में आने वाली 'वा' को अनुवृत्ति दशार्ह शब्द के लिए नहीं चाहिए । इसलिए सत्र २.८५ में नियम भिन्न अलग करके कहा जाने के कारण ( पृथगयोगात् ), सूत्र २८५ में 'वा' शब्द की निवृत्ति होती है ।
२.८६ मासू--मस्सू शब्द में से संयुक्त व्यञ्जन में पहले स् का लोप होकर, पिछला अ स्वर दोध हुआ है।
२.८७ हरि अन्दो--हरिश्चन्द्र शब्द में श्च् का लोप होने के बाद केवल 'अ' स्वर मात्र शेष रहा है। __ २.८८ राई--इस वर्णान्तर का और एक स्पष्टीकरण ऐसा है:--रात्रि-रत्तिराति ( सुलभीकरण )-राइ ( सूत्र १.१७७ के अनुसार त् का लोप )।
२.८९-९३ संयुक्त व्यञ्जनों के वर्णान्तर करते समय किस नियम का पालन हो, उसकी सूचना इन सूत्रों में दी गई है ।
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