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प्राकृतव्याकरण- द्वितीयपाद
२.८९ पदस्य अनादौ वर्तमानस्य - पद में अनादि स्थान पर होने वाला का प्राकृत में पद के आदि स्थान पर प्रायः संयुक्त व्यञ्जन नहीं होता है । शेष — संयुक्त व्यञ्जन में से एकाध अवयव का लोप होने पर जो व्यञ्जन रह जाता है वह शेष व्यञ्जन होता है । आदेश - - आदेश के स्वरूप में आने वाला व्यञ्जन यहाँ अभिप्रेत है । उदा० - कृत्ति शब्द में व्यञ्जन को 'च' आदेश होता है ( सूत्र २.१२ देखिए ) । नग्ग - मराठी में नागडा; हिन्दी में नंगा । जक्ख - मराठी में जाख ।
२.९० द्वितीयइत्यर्थः - वर्गीय व्यञ्जनों में से द्वितीय और चतुर्थ ( तुर्य ) व्यञ्जनों का द्वित्व करते समय, उनके पूर्व का व्यञ्जन आकर यानी द्वितीय व्यञ्जन के पूर्व पहला व्यञ्जन और चतुर्थ व्यञ्जन के पूर्व तृतीय व्यञ्जन आकर, उनका हित्व होता है । उदा०—क्ख, टूक, ग्ध, व्भ, इत्यादि । वग्घो - मराठी में वाघ | घस्य नास्ति -- - ऐसा आदेश ( कहीं भी कहा ) नहीं है; इसलिए आदेश रूप घ का द्वित्व नहीं होता है ।
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२०६२ दीर्घा
परयोः - व्याकरण के नियमानुसार आए हुए और वैसे न आए हुए ( यानी मूलतः दीर्घ होने वाले ) जो दोघं ( स्वर ) और अनुस्वार, उनके आगे । कंसालो –— कंस + आल | यह आल मत्वर्थी प्रत्यय है ( सूत्र २०१५९ देखिए 1 ) २·६३ रेफः नास्ति - सूत्र २०७९ के अनुसार, रेफ का सर्वत्र लोप होने कारण, वह रेफ शेष व्यञ्जन के स्वरूप में कभी नही होता है । द्र इस संयुक्त व्यञ्जन में मात्र ( सूत्र २०७० देखिए ) वह संयुक्त व्यञ्जन का द्वितीय अवयव, इस
स्वरूप में हो सकता है ।
२६४ आदेशस्य णस्य - धृष्टद्युम्न शब्द में मन कोण आदेश है ऐसा हेमचन्द्र कहता है । मन के ण्ण के लिए सूत्र २४२ देखिए ।
२०६७ समास में दूसरे पद के आदि व्यञ्जन विकल्प से आदि अथवा अनादि माना जाता है । इसलिए उसका द्वित्व विकल्प से होता है । उदा० - गाम, गाम |
२·६८ मूल संस्कृत शब्दों में से संयुक्त व्यञ्जन न होते हुए भी, वे शब्द प्राकृत में आते समय, उनमें से कुछ अनादि व्यञ्जनों का द्वित्व हो जाता है । उदा०-- - तैलादि गण के शब्द |
२·६६ सूत्र २९९८ ऊपर की टिप्पणी देखिए । सेवादि गण के शब्दों में यह द्वित्व विकल्प से होता है ।
२.१००-११५ इन सूत्रों में स्वरभक्ति विप्रकर्ष विश्लेष का विचार है । स्वरभक्ति से अ, इ, उ अथवा ई ये स्वर प्रायः आते हैं ।
२·१०० सारङ्गं– मराठी में सारंग । शारंगी - पाणि ।
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