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टिप्पणियाँ
अवयव का लोप किया और पिछला हस्व होने वाला स्वर दीर्घ किया, तो सुलभीकरण होता है। उदा०-व्याघ्र वग्ध-वाध । सूत्र २.२-८८ में प्राधान्यतः समानीकरण की चर्चा है । तथापि सुलभीकरण की स्वतन्त्र चर्चा नहीं है। ( सुलभीकरण के संकीर्ण उदाहरण सूत्र २.२१, २२, ५७, ७२, ८८, ९२ के नीचे दिखाई देते हैं ।
संयुक्त व्यञ्जनों के विकार कहते समय हेमचन्द्र ने उनकी रचना क ख इत्यादि वर्णानुक्रम से की है।
२.१ यह अधिकार सूत्र है। इसका अधिकार सूत्र २.११५ तक यानी सूत्र २.११४ के अन्त तक है । संयुक्तस्य-संयुक्त व्यञ्जन का।
२.२ संयुक्तस्य को भवति-संयुक्त व्यञ्जन का क होता है। यानी संयुक्त व्यञ्जन में से एक अवयव का लोप होकर, क व्यञ्जन रहता है ( अथवा आता है)। यह क व्यञ्जन अनादि हो, तो सूत्र २.८९ के अनुसार उसका द्वित्व होता है । उदा०--शक्त-स क-सक्क । आगे आने वाले सूत्रों में ऐसा ही प्रकार जाने ।
२.३ खो भवति-ख होता है। सूत्र . २ ऊपर की टिप्पणी देखिए । यह ख अनादि हो, तो उसका द्वित्व सूत्र २.९० के अनुसार होता है। किन्तु यह ( शेष ) ख यदि प्राकत में शब्द के आरम्भ में हो, तो उसका द्वित्व न होते ख वैसा ही रहता है । उदा० --क्षय-खअ । आगे आने वाले उदाहरणों में भी ऐसा ही जाने ।
२.४ नाम्नि संज्ञायाम्-नामवाचक शब्द में। पोखरिणो-मराठी में पोखरण ।
२.८ खम्भो-मरीठी में खांन ।
२.५ भुक्न्वा , ज्ञात्वा, श्रुत्वा, बुद्ध वा-ये शब्द संस्कृत में, मुज, ज्ञा, श्रु और बुध धातुओं के पू० का० धा० अ० है। उनमें त्व और ध्व संयुक्त व्यञ्जन हैं। श्लोक १-सकल पृथ्वी का भोग लेकर, अन्यों को अशक्य ऐसा तप करके, विद्वान् शान्ति (-नाथ जिन तत्त्व) जानकर श्रेष्ठ मोक्षपद में (सिवं) पहुँच गया।
२.१६ विञ्चुओ-मराठी में विंचू । २.१७ खीरं-मराठी में खीर ।
३.१८ लाक्षणिकस्यापि..... भवति-प्राकृत ल्याकरण के अनुसार आमा शब्द को क्षमा ऐसा आदेश होता है (सूत्र २.१०१ देखिए) । उसमें से ख का छ होता है।
२.२० घण-मराठी में सण ।
२.२४ य-य के द्वित्व से बनने वाला य्य ऐसा संयुक्त व्यञ्जन ( माहाराष्ट्री) प्राकृत में नहीं है, उसका ज्ज ऐसा वर्णान्तर होता है। चौर्यसमत्वात् भारिआ
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