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प्राकृतव्याकरण-द्वितीयपाद
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भार्या शब्द चौर्य शब्द के समान होने से, उसमें स्वरभक्ति होकर भारिया ऐसा वर्णन्तिर होता है। चौर्यसम शब्दों में स्वरभक्ति होती है सूत्र २.१०७ देखिए )। कज्ज-मराठी में काज । __२.२६ मज्झं-मराठी में माज ( -धर ), माझ (-गाव ) । गुज्झं-मराठी में गूज ।
२.२९ मट्टिआ-हिन्दी में मिट्टी । पट्टण----मराठी में पाहण ।
२.३० वटुल-मराठी में वाटोला, वाटोले । रायवट्टयं-राजवातिक । उभा स्वाती के तत्त्वार्थाधिगम सूत्र के ऊपर के वार्तिक अन्थ का नाम राजवार्तिक है। वर्मन् शब्द का वर्णान्तर भी वट्ट होता है। इसीलिए यहाँ राज वर्मन् ऐसा भी संस्कृत प्रति शब्द होगा।
कत्तरी-मराठी में कातरी। २.३३ च उत्थो-मराठी में, हिन्दी में चौथा । २.३४ लट्ठी मुट्ठी दिट्ठी-मराठी में लाठी, मूठ, दिठी । पुट्ठो-मराठी में पुट्ठा (घोड़े का )। २. ६ कबड्डो-मराठी में कवडी । हिन्दी में कोडी। २.४० वडढो-मराठी में बुड्ढा । हिन्दी में बूढा ।
२.४१ अन्ते वर्तमानस्य-अन्त में होने बाले का । ऐसा कहने का कारण श्रद्धा सब्द में से आदि श्र को यह नियम लागू न हो। अद्ध-हिन्दी में आधा ।
२.४५ हत्थो, पत्थरो, आत्यि-मराठी में हात; फत्तर । पत्थर, पाचर ( बट); आथी । हिन्दी में हाथ ।
२४७ पल्लट्टो-मराठी में पालट । पर्यस्त में से 2 के ल्ल के लिए सूत्र २.६८ देखिए ।
२.५० पक्षे सोपि-विकल्प-पक्ष में वह ग्रह भी होता है । इन्धं-सूत्र १.१७७ देखिए।
२.५१ भप्पो भस्सो-इस पुल्लिग के लिए सूत्र १.३२ देखि , अप्पा अप्पाणो--इन रू0 के लिए सूत्र ३.६ देखिए । अत्ता--आत्मन् शब्द मे से त्म इस संयुक्त व्यञ्जन में सूत्र २.७८ के अनुसार म् का लोप और सत्र २.८६ क अनुसार शेष त् का द्वित्व होकर अर्ता वर्णान्तर हुआ है ।
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