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________________ ३२२ टिप्पणियां १.३५ एसा गरिमा... .."एस अञ्जली--यहाँ शब्द का स्त्रीलिंग तथा पुल्लिग दिखाने के लिए अनुक्रम से एसा और एस ये सर्वनाम के स्त्रीलिंगी और पुल्लिगी रूप प्रयुक्त किए हैं । गड्डा, गड्डो--सूत्र २.३५ देखिए । इमेति तन्त्रेण--सूत्र में इमा ( इमन् ) ऐसा प्रत्यय कह कर नियम दिए जाने के कारण । त्वादेशस्य संग्रहः-- संस्कृत में भाव वाचक नाम साधने का 'त्व' प्रत्यय है। उदा.--बाल बालत्व । इस त्व प्रत्यय को प्राकृत में इमा (डिमा) और तण ऐसे आदेश होते हैं । ( सूत्र २.१५४ देखिए)। उदा०--पीणिमा, पीणत्तण । तथा, संस्कृत में पृथु इत्यादि कुछ शब्दों को इमन् प्रत्यय लगाकर भाववाचक नाम साधे जाते हैं। उदा०-पृथ प्रथिमन् । अब, प्रस्तुत सूत्र में जो इमा शब्द प्रयुक्त किया है, वह त्व का आदेश इस स्वरूप में आने वाला इमा (डिमा) और पृथु इत्यादि शब्दों को लगने वाला इमा ( इमन् ), इन दोनों का ही ग्रहण ( संग्रह ) करता है । १.३६ बाहु--यह शब्द संस्कृत में पुल्लिगी है। १.३७ संस्कृत लक्षण-संस्कृत व्याकरण । डो... ... भवति--डो ऐसा आदेश होता है । डो यानी डित् ओ। डित् शब्द का अभिप्रायः है जिसमें ड् इत् है वह । डो में ड् इन् इत् है। विशिष्ट प्रयोजन साधने के लिए शब्द के आगे या पीछे इत् वर्ण जोडे जाते हैं। इत् वर्ण वर्ण यानी जो वर्ण आता है और अपना कार्य करके जाता है; इस लिए शब्द के अन्तिम रूप में इत् वर्ण नहीं होता है । अब, जिसमें ड् इत् ऐसा डित् प्रत्यय ( अथवा आदेश ) जिस शब्द के आगे आता है, उस शब्द के भ' के 'टि' का लोप होता है। भ यानी प्रत्यय लगाने के पूर्व होने वाला शब्द का रूप ( अंग )। टि यानी शब्द में अन्त्य स्वर के साथ अगले सर्व वर्ण । संक्षेप में, डित् प्रत्यय अथवा आदेश लगते समय, शब्द के अंग में से अन्त्य स्वर के साथ अगले सवं वर्गों का लोप होता है । उदा०--सवंतः + डो = सव्वत् = ओ = सव्वदो = सवओ। सिद्धावस्था--सूत्र १.१ ऊपर की टिप्पणी देखिए। कुदो--ऐसा बर्णान्तर शौरसेनी भाषा में भी होता है। १.३८ यथासंख्यम्-अनुक्रम से । अभेदनिर्देशः सर्वादेशार्थः -'निष्प्रती ओत्परी ऐसा इस सत्र में अभेद से किया हुआ निर्देश यह दिखाने के लिए है कि आदेश संपूर्ण शब्द को होता है। १.३६ ह अधिकार सूत्र है । 'प्रावरणे अङ्ग्वाऊ' ( सूत्र १.१७५ ) इस सूत्र के अन्त तक उस का अधिकार है। १.४० त्यदादि--त्यत् इत्यादि सर्वनामों को त्यदादि संज्ञा है। उसमें त्यद्, सद्, यद् एतद इत्यादि सर्वनाम आते हैं । अव्यय-तीनों लिंगों, सब विभक्तियों और वचनों में जि का रूप विकार न पाकर वैसा ही रहता है वह अव्यय । अम्हे-अम्ह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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