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प्राकृतव्याकरण- प्रथमपाद
१२७ क्त्वायाः पण तु क्त्वा प्रत्यय पूर्वकाल वाचक धातुसाधित अव्यय साधने के लिए है । क्त्वा के सूत्र २०१४६ के अनुसार जो आदेश होते हैं, उनमें से तूण और तुआण आदेशों में होता है । स्यादि ( सि + आदि ) - यानी शब्दों को लगने वाले विभक्ति प्रत्यय । स्यादि संज्ञा के लिए सूत्र ३२ ऊपर की टिप्पणी देखिए । विभक्ति प्रत्ययों में तृतीया एकवचन और षष्ठो अनेक वचन इनमें ण होता है; और सप्तमी के अनेक वचनी प्रत्यय में सु होता है । का ऊणं काऊआणकर धातु के पूर्वकालवाचक धातु साधित अव्यय ( सूत्र २ १४६, ४२१४ देखिए ) । वच्छेणं वच्छेण- वच्छ शब्द के तृतीया ए० व० । करिअ -- कर धातु का पूर्वकाल वाचक धातुसाधित अव्यय ( सूत्र २०१४६, ३ १४७ देखिए ) । अग्गिणो-अग्गि शब्द का प्रथमा अनेक वचन ( सूत्र ३०२२ - २३ देखिए ) ।
दाणि - ये इदानीम् शब्द के वर्णान्तरित रूप है ।
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१.२९ इआणि १.३० अनुस्वारस्य वर्गे परे — अनुस्वार के आगे वर्गीय व्यञ्जन होने पर । यहाँ वर्ग का अर्थ वर्गीय व्यञ्जन है । व्यञ्जनों के वर्गों के लिए सूत्र ११ ऊपर की टिप्पणी देखिए । प्रत्यासत्ति - सांनिध्य, सामीप्य । वर्गस्यान्त्यः - ( उस उस ) वर्ग में से अन्त्य व्यञ्जन ( यानी ङ्, ञ्, नू, और म् 1
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१०३१-३६ प्राकृत में शब्द का लिंग प्रायः संस्कृत समान हैं । तथापि कुछ शब्दों के लिंग प्राकृत में बदले हुए हैं। उनका विचार इन सूत्रों में है ।
१०३१ पुंसि - पुल्लिंग में ।
१९३२ सान्तम् नान्तम् - स् और न् इन व्यञ्जनों से अन्त होने वाले शब्दों के शब्दों के रूप | उदा०- - यशस्; जन्मन् ।
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१०३३ अच्छीइं - - यह नपुंसकलिंगी रूप है सूत्र ३ २६ देखिए । अञ्जल्यादि पाठात् -- अञ्जल्यादि यानी अञ्जलि शब्द आदि प्रथम होने वाला शब्दों का एक विशिष्ट समूह, वर्गं अथवा गण । इस गण में आने वाले शब्द सूत्र १.३५ ऊपर की वृत्ति में दिए गए हैं। एसा अच्छी-अच्छी रूप स्त्रीलिंगी है, यह दिखाने के लिए स्त्रीलिंगा सर्वनाम 'एसा ' प्रयुक्त किया है । चक्खूई; नयणाई, लोअणाई, वयणाई – ये सर्व नपुंसकलिंगी रूप हैं। विज्जूए - स्त्रीलिंगी रूप है । कुलं, छंद, माहप्पं, दुक्खाई, भामणाई -- ये नपुंसकलिंगी रूप हैं। सिद्धम्-हेमचन्द्र का मन ऐसा दिखाई देता है कि नेत्र और कमल ये शब्द संस्कृत में पुंल्लिगी और नपुंसकलिंगी हैं।
नेत्ता
१·३४ क्लीबे--नपुंसकलिंग में । गुणा, देवा, बिन्दुणो खग्गो, मण्डलग्गो, कररुहो, रुक्खा -- ये सब पुल्लिंगी रूप है । विहवेहि गुणाइँ मग्गन्ति -- विभवैः गुणान् मार्गयन्ति, ऐसो भी संस्कृत छाया दी गई है ।
२१ प्रा० व्या०
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