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________________ प्राकृतव्याकरणे टायमा पई तई || ३७० ॥ अपशे युष्मदः टाङि अम् इत्येतैः सह पई तई इत्यादेशौ भवतः । टा । मुक्का विवरतरु फिट्टइ पत्तत्तणं न पत्ताणं । तुहु पुणु छाया जइ होज्ज कहवि ता तेहि पत्तेहि ॥ १ ॥ महु' हिउ त तारा तुहु स वि अन्नें विनडिज्जइ । पिम काई करउ हउ काईं तु मच्छे मच्छु गिलिज्जइ ॥ २ ॥ ङि । इँ मइँ बेहि वि रणगर्याह को जयसिरि तक्केइ । के सहि लेप्पणु जमधरिणि भण सुहु को थक्केइ ॥ ३ ॥ एवं तइ । अमा | पइँ मेल्लन्ति हे महु मरणु महँ मेल्लन्तहों तुज्झु । सारस जसु जो वेग्गला सो वि कृदन्तहों सज्झ ॥ ४ ॥ एवं तई । - अपभ्रंश भाषा में, युष्मद् को टा, ङि, और अम् इन (प्रत्ययों ) के साथ पई और तई ऐसे आदेश होते हैं । उदा० - टा (प्रत्यय) के गह: - पई मुक्काहँ पत्तेहि ॥ १ ॥ ; महु गिलिज्जइ ॥ २ तई ( आदेश भी होता है ) । इसी प्रकार तई ( ऐसा आदेश भी होता है ) । •••थक्केइ ॥ ३ ॥ इसी प्रकार मेल्लन्तिहें " सज्झ ॥४॥ ङि (प्रत्यय) के सहः - इँ अम् (प्रत्यय) के सह : - पइँ भिसा तुम्हेहिं ॥ ३७१ ।। अपशे युष्मदो भिसा सह तुम्हेहिं इत्यादेशो भवति । १. त्वया मुक्तानामपि वरतरो विनश्यति (फिट्टइ) पत्रत्वं न पत्राणाम् । तव पुनः छाया यदि भवेत् कथमपि तदा तैः पत्र (एव) ॥ २. मम हृदयं त्वया तया त्वं सापि अन्येन विनाट्यते । प्रिय किं करोम्यहं किं त्वं मत्स्येन मत्स्यः गिल्यते ॥ २७३ ३. त्वयि मयि द्वयोरपि रणगतयोः को जयश्रियं तर्कयति । गृहीत्वा यमगृहिणी भण सुखं कस्तिष्ठति । ४. स्वां मुञ्चन्त्याः मम मरणं मां मुञ्चतस्तव । सारस: (यथा ) यस्य दूरे (वेग्गला) सः अपि कृतान्तस्य साध्यः ॥ १८] प्रा० व्या० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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