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प्राकृतव्याकरण
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अपभ्रंश भाषा में, स्त्रीलिंग में होने वाली संज्ञा के आगे होने वाले जस् भोर शस् इन प्रत्ययों को प्रत्येक को उ और ओ ऐसे आदेश होते हैं। ( जस् और शस् प्रत्ययों का, लोप होता है ( सूत्र ४.३४४ देखिए ) इस नियम का अपवाद (ये दो आदेश होते हैं । उदा०-जस् को आदेश :-अंगुलिउ .. .."नहेण । शस ( को आदेश ) : -- सुन्दर'.. .. पेच्छन्ताप ॥ १॥ ( आदेश कहते समय सूत्र में ) भिन्न वचन प्रयुक्त किए जाने से ( ये आदेश ) अनुक्रम से नहीं होते हैं।
टए ।। ३४९॥ अपभ्रंशे स्त्रिया वर्तमानान्नाम्नः परस्याष्टायाः स्थाने ए इत्यादेशो भवति।
निअ-'मुह-करहि वि मुद्ध कर अन्धारइ पडिपेक्खइ । ससिमण्डलचन्दिमएँ पुणु काइँ न दूरे देक्खइ॥१॥ जहिं मरगयकन्तिएँ संवलिअं ॥ २॥
अपभ्रंश भाषा में, स्त्रीलिंग में होने वाली संज्ञा के आगे आने वाले टा ( प्रत्यय ) के स्थान पर ए ऐसा आदेश होता है। उदा०-निअमुह........."देक्खइ ॥१॥ जहिं..."संवलियं ॥२॥
ङस् ङस्योहे ॥ ३५० ॥ अपभ्रंशे स्त्रियां वर्तमानान्नाम्नः परयोर्डस् ङसि इत्येतयोर्हे इत्यादेशो भवति ।
डसः । तुच्छ मज्झहे तुच्छजम्पिरहे। तुच्छच्छरोमावलिहे सुच्छराय तुच्छ्यर-हासहे। पियवयणु अलहन्ति अहे तुच्छकाय-वम्मह-निवासहे। अन्नु जु तुच्छउँ तहे" धणहे तं अक्खणह न जाइ ।
कटरि थणंतरु मुद्धडहे जे मण विच्चि ण माइ॥ १॥ १. निजमुखकरैः अपि मुग्धा करं अन्धकारे प्रतिप्रेक्षते ।
शशिमण्डलचन्द्रिकया पुनः किं न दूरे पश्यति ।। २. यत्र ( यस्मिन् ) मरकतकान्त्या संबलितम् । ३. तुच्छमध्यायाः तुच्छजल्पनशीलायाः । तुच्छाच्छरोमावल्या: तुच्झरागाया: तुच्छतर-हासायाः । प्रियवचनमलभमानाया: तुच्छकाय-मन्मथ-निवासायाः । अन्यद् यद् तुच्छं तस्या धन्यायाः तदाख्यात न याति । आश्चयं स्वनान्तरं मुग्धायाः येन मनो बमंनि न भाति ॥
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