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चतुर्थः पादः
____ अपभ्रंश भाषा में, षष्ठी विभक्ति ( प्रत्ययों ) का प्रायः लोप होता है । उदा.--- संगर-स एहिं... . 'दारन्तु ॥ १॥ उदाहरणों के अनुसार ( ऐसा लोप होता है ) यह दिखाने के लिए, ( सूत्र ४.३४४ से ) पृथक ऐसा ( सूत्र ४.३४५ में प्रस्तुत ) नियम कहा गया है।
आमन्त्र्ये जसो होः ॥ ३४६॥ अपभ्रंशे आमन्त्र्येर्थे वर्तमानानाम्नः परस्य जसो हो इत्यादेशो भवति । लोपापवादः ।
तरुणहो 'तरुणिहो मुणि उ मइँ करहु म अप्पहों घाउ ॥ १॥
अपभ्रंश भाषा में, सम्धोधनार्थी होने वाली संज्ञा के आगे आने वाले जस् (प्रत्यय ) को हो ऐसा आदेश होता है । ( जस् प्रत्यय का ) लोप होता है ( सूत्र ४. ४४ देखिए ) इस नियम का अपवाद प्रस्तुत नियम है। उदा.-तरुणहो.... धाउ ॥ १ ॥
भिस्सुपोहि ॥ ३४७॥ अपभ्रंशे भिस्सुपोः स्थाने हिं इत्यादेशो भवति । गुणहि न सम्पइ कित्ति पर ( ४.३३५.१ )। सुप् ।
भाईरहि जिवं भारइ मग्गे हि तिहि वि पयट्टइ ॥ १॥
अपभ्रंश भाषा में, भिम और सुप इन ( प्रत्ययों के स्थान पर हिं ऐसा आदेश होता है। उदा.-( भिस् के स्थान पर हि आदेश ) :-गुणहि... .''पर । सुप् ( के स्थान पर हिं आदेश ) :-भाईरहि... .. 'पयट्टइ ॥ १ ॥
स्त्रियां जमशसोरुदोत् ॥ ३४८॥ अपभ्रंशे स्त्रियां वर्तमानानाम्नः परस्य जसः शसश्च प्रत्येक मुदोतावादेशी भवतः । लोपापवादौ । जसः। अंगुलिउ जज्जरिया उ नहेण ( ४.३३३.१ )। शसः ।
सुन्दर सव्वं गाउ विलालिणीओ पेच्छन्ताण ॥ १॥ वचनभेदान्न यथासंख्यम् । १. (हे ) तरुणाः तरुण्यः ( 2 ) ज्ञातं मया कुरुत मा आत्मनः घातम् । २. भागीरथी यथा भारते त्रिष मार्गेष अपि प्रवर्तते । ३. सुन्दरसर्वाङ्गीः विलासिनी प्रेक्षमाणानाम् ।
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