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________________ २६२ चतुर्थः पादः ___ अपभ्रंश भाषा में, ( शब्द में से अन्त्य ) कार और उकार इनके आगे आने वाले आम् ( प्रत्यय ) को हुँ और हं ऐसे आदेश होते हैं। उदा-दइबु... ... ... खलवयणाई॥ १ ॥ प्रायः ( शब्द ) का अधिकार होने से, क्वचित् सुप् ( प्रत्यय ) को भी हूँ ( ऐसा आदेश होता है । उदा०-- ) धवल'.. .. 'करेवि ॥ २ ॥ ङसि-भ्यस-ङीनां हेहुंहयः ॥ ३४१॥ अपभ्रंशे इदुद्भयां परेषां ङसि भ्यस् ङि इत्येतेषां यथासंख्यं हे हुं हि इत्येते त्रय आदेशा भवन्ति । डसे हैं। गिरिहें सिलायलु' तरुहे फलु धेप्पइ नीसावन्नु ।। घरु मेल्लेप्पिणु माणुसहं तो वि न रुच्चइ रन्नु ॥ १॥ भ्यसो हुँ । तरुहुँ वि वक्कलु फलु मुणि वि परिहणु असणु लहन्ति । सामिहुँ एत्ति उ अग्गलउं आयरु भिच्चु गृहन्ति ॥२॥ हि। अह विरलपहार जि कलिहि धम्मु ॥ ३॥ अपभ्रंश भाषा में ( शब्द में से भन्त्य ) इ और उ इनके आगे आने वाले सि, म्यस् और डि इन ( प्रत्ययों ) का अनुक्रम से हे, हुँ, हि ऐसे ये तीन आदेश होते हैं । उदा.-ङसि ( प्रत्यय ) को हे ( ऐसा आदेशः- ) गिरिहे..."रन्नु ॥ १ ॥ म्यस् (प्रत्यय) को हु ( ऐसा आदेशः-) तरुहुँ।..गृहन्ति ॥२. ङि ( प्रत्यय ) को हि (ऐसा आदेश):-अह विरल.... 'धम्मु ॥३॥ आट्टो णानुस्वारौ ॥ ३४२ ॥ अपभ्रंशे अकारात् परस्य टा-वचनस्य णानुस्वारावादेशौ भवतः । दइएं पवसन्तेग ( ४.३३३.१) । अपभ्रंश भाषा में : शब्द के अन्त्य ) अकार के आगे आने वाले टा-वचन को ण और अनुस्वार ऐसे आदेश होते हैं । उदा०-दइएं पवसन्तेण । एं चेदुतः ।। ३४३ ॥ अपभ्रंशे इकारोकाराभ्यां परस्य टा-वचनस्य ए चकारात् णानुस्वारी च भवन्ति । एं। १. गिरे : शिलातलं तरो: फलं गृह्यते नि सामान्यम् । गृहं मुक्त्वा मनुष्याणां तथापि न रोचते अरण्यम् ॥ २. तरुभ्यः अपि वल्कलं फलं मुनयः अपि परिधानं अशनं लभन्ते । स्वामिभ्यः इयत् अधिकं ( अग्गल ) आदरं भृत्या गृह्णन्ति ॥ ३. अथ विरल प्रभावः एव कलो धर्मः। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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