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________________ प्रथमः पादः यूवर्णस्येति किम् । गूढोअर' - तामरसाणुसारिणी भमरपन्ति व्व ॥ ५ ॥ अस्व इति किम् । पुहवीसो । इ-वर्ण और उ-वर्ण इनके आगे विजातीय स्वर होने पर संधि नहीं होती है । उदा०--न वेरि पडिभिन्नो । इ-वर्ण और उ-वर्ण के ( आगे आने वाले विजातीय स्वर से संधि नहीं होती है। ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण उनके आगे दिए वैसी संधियाँ शक्य होती हैं -- ) गूढोअर पति व्व । ( सूत्र में ) विजातीय स्वर ( आगे रहने पर | ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण इ और उ के आगे होने वाले सजातीय स्वर से संधि शक्य होती है । उदा०- ) पुहवीसो । एदोतोः स्वरे ॥ ७ ॥ एकार- ओकारयोः स्वरे परे सन्धिर्न भवति । वहुआइ नहल्लिने आबन्धन्तीएं कञ्चुअं अंगे । मयरद्धय सरधोरणिधाराछेअ व्व दीसन्ति ॥ १ ॥ अपज्जत्तेभकलभदन्तावहासमूरुजुअं । उवमासु तं चैव मलिअबिसदण्डविरसमालक्खिमो एहि ॥ २ ॥ अहो ' अच्छरिअं । एदोतोरिति किम् । अथालोअणतरला इअरकईणं भमन्ति बुद्धीओ । अत्थ च्चेअ निरारम्भमेन्ति हिअयं कइन्दाणं ॥ ३ ॥ एकार ( = ए ) और ओकार ( = ओ ) के आगे स्वर होने पर संधि नहीं होती है । उदा० - बहुआ "अच्छरिअं । ए और ओ स्वरों की, ऐसा सूत्र में क्यों कहा है ? ( कारण ए और ओ स्वर छोडकर अ इत्यादि स्वरों के आगे आने बाले स्वर से संधि हो सकती है । उदा ) अत्थालोअणकइन्द्राणं । Jain Education International - १. गूढोदर तामरसानुसारिणी भ्रमरपंक्तिरिव । २. पुहबी + ईसी ( पृथ्वी + ईश ) । ३. वध्वा नखोल्लेखने आबध्नत्या कबुकमङ्गे । मकरध्वजशरधोरणिधारा छेदा इव दृश्यन्ते । १ । ४. उपमासु अपर्याप्तभकलमदन्ता बभास मूरुयुगम् । तदेन मृदितसिदण्ड विरसमालक्षषामह इदानीम् ॥२॥ ५. अहो आश्चर्यम् । ६. अर्थालोचनतरला इतरकवीनां भ्रमन्ति बुद्धयः । अर्धा एव निरारम्भं यन्ति हृदयं कवीन्द्राणाम् ॥ ३ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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