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________________ प्राकृतव्याकरणे ) बारी जणो । क्वचित् विकल्प से ( ह्रस्व स्वर का दीर्घ स्वर होता है । उदा०-मई... वेलवणं । ( अब ) दीर्घ स्वर का ह्रस्व स्वर ( होने का उदाहरण :- -) निअम्ब 'मालस्स । क्वचित् विकल्प से ( दीर्घ स्वर का ह्रस्व स्वर होता है । ( उदा०- ) जउँणयडं.. "बहूमुहं । ... पदयोः सन्धिर्वा ॥ ५ ॥ 3 संस्कृतोक्तः सन्धिः सर्वः प्राकृते पदयोर्व्यवस्थितविभाषया भवति । वासेसी वास- ' इसी । विसमायवो विसम - आयवो । दहीसरो दहि - ईसरो । साऊअयं * साउ-उअयं । पदयोरिति किम् । " पाओ । पई । " वच्छाओ । मुद्धाइ । मुद्धाए । महइ । महए । बहुलाधिकारात् क्वचिद् एक- पदेपि । काही । " बिईओ बीओ | 10 ११ काहि संस्कृत ( व्याकरण ) में कही हुईं सर्व संधियाँ आकृत में दो पदों में व्यवस्थितविभाषा से होती हैं । उदा- वासेसी साउ - उभयं । ( सूत्र में ) दो पदों में ( संधि होती है ) ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण एक ही पद के दो स्वरों में प्रायः संधि नहीं होती हैं । उदा० ) पाओ महए । तथापि बहुल का अधिकार होने से क्वचित् एक पद में भी ( दो स्वरों में संधि होती है । उदा० ) काहिइ बीओ | न युवर्णस्यास्वे ॥ वर्णस्य च उवर्णस्य च अस्वे वर्णे परे सन्धिर्न भवति । न वेरिवग्गे बि भवयासी । वन्दामि 3 अज्ज - वइरं । १. व्यास ऋषि । ३. दधि - ईश्वर । दणु इन्द १४ रुहिर - लित्तो सहइ उइन्दो नह- प्पहावलि - अरुणो । संझा- वहु-अवऊढो णववारिहरो व्व विज्जुला - डिभिन्न ॥ १ ॥ ६ ॥ १४. दनुजेन्द्ररुधिरलिप्तः शोभते उपेन्द्रो सन्ध्याबधूपगूढो नववारिधर इव Jain Education International ५. पाद । ७. वत्स या वसस् का पंचमी एक वचन है । ८. मुग्धा का तृतीया इत्यादि का एक वचन है । ९. कांक्ष धातु का आदेश मह है ( ४.१९२); उसका वर्तमानकाल तृतीयपुरुष एकवचन । १०. कर धातु का भविष्यकाल तृतीय पुरुष एकवचन । ११. द्वितीय । १२. न वैरिवर्गेऽप्यवकाशः । २. विषम आतप । ४. स्वादु-उदक ! ६. पति १३. वन्दे आर्यवज्रम् | नखप्रभावल्यरुणः । विद्युत् प्रतिभिन्नः ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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