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________________ प्राकृतव्याकरण २०७ छिद् (छिदि ) धातु को ( दुहाव, णिच्छल्ल, णिज्झोड, णिज्वर, गिल्लूर और लूर ऐसे ) ये छः आदेश विकल्प से होते हैं। उदा.--दुहावइ... ."लूरइ । (विकल्प-) पक्ष में :--छिन्दइ। ___ आङा ओअन्दोद्दालौ ॥ १२५ ॥ आङा युक्तस्य छिदेरोअन्द उद्दाल इत्यादेशौ वा भवतः । ओअन्दइ । उद्दालइ । अच्छिन्दइ। आ ( उपसर्ग) से युक्त होने वाले छिद् धातु को ओअन्द और उद्दाल ऐसे आदेश विकल्प से होते हैं । उदा.--ओअन्दइ, उद्दालइ । (विकल्प पक्ष में ):-- मच्छिन्दह । मृदो मल-मढ-परिहट्ट-खड्ड-चड्ड-मड्ड-पन्नाडाः ।। १२६ ॥ मृनातेरेते सप्तादेशा भवन्ति । मलइ। मढइ। परिहट्टइ। खड्डइ। चड्डइ । मड्डइ। पन्नाडइ । मृनाति ( V मृदु ) धातु को ( मल, मढ, परिहट्ट, खड्डु, चड्ड. मड्डु, और पन्नाड ऐसे ) ये सात आदेश होते हैं । उदा०--मलइ... .. पन्नाडइ । स्पन्देश्चुलुचुलः ।। १२७ ।। स्पन्देश्चुलुचुल इत्यादेशो वा भवति । चुलुचुलइ । फन्दइ। स्पन्द् धातु को चुलचुल ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा--- चुलुचुलइ । (विकल्प-पक्ष में ):--फन्दइ। निरः पदेवलः ॥ १२८ ॥ निर्वस्य पदेवल इत्यादेशो वा भवति । निव्वलइ। निप्पज्जइ । निर् ( उपसर्ग ) पूर्व में होने वाले पद धात को वल ऐसा आदेश विकल्प से होता है । उदा.---निव्वलइ । ( विकल्प-पक्ष में ):--निप्पज्जइ । विसंवदेविअट्ट-विलोट्ट-फंसाः ॥ १२९ ॥ विसंपूर्वस्य वदेरेते त्रय आदेशा वा भवन्ति। विअट्टइ : विलोट्टइ । फंसइ । विसंवयइ। वि और सम् ( ये उपसर्ग) पूर्व में होने वाले वद् धात को ( विअट्ट, विलोट्ट और फंस ऐसे ) ये तोग आदेश विकल्प से होते हैं। उदा.-विअट्टइ... .. 'फंसइ । (विकल्प पक्ष में ) :-विसंवयइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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