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________________ प्राकृतव्याकरणे १९५ श्रु ( शृणोति ) धातु को हण ऐसा आदेश विकल्प से होता है । उदा०-हणइ । (विकल्प पक्ष में :-- ) सुणइ । धूगेधुवः ॥ ५९॥ धुनातेधुंव इत्यादेशो वा भवति । धुवइ । धुणइ । धू (घुनाति ) धातु को धुव ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा.-धुबइ । ( विकल्प पक्ष में :- ) घुणइ । मुवे:-हुव-हवाः ॥ ६०॥ भुवो धातो) हुव हव इत्येते आदेशा वा भवन्ति । होइ होन्ति । हुवइ हुवन्ति । हवइ हवन्ति । पक्षे । भवइ । 'परिहीण विहवो । भविउँ । पभवइ । परिभवइ । सम्भवइ । क्वचिदन्यदपि । उब्भुअई । 'भत्तं । भू (धातु ) को हो, हुव, और हव ऐसे ये आदेश विकल्प से होते हैं। उदा.होइ."हवन्ति । (विकल्प-) पक्ष में :-भवइ... ..'सम्भवइ । क्वचित् भिन्न (वर्णान्तर ) भी होता है । उदा.-उन्मुमइ, भत्तं ।। अविति हुः॥ ६१ ॥ विद् वर्जे प्रत्यये भुवो हु इत्यादेशो वा भवति । हुन्ति । भवन हुन्तो । अवितीति किम् । होइ। वित् ( प्रत्यय ) छोड़ कर (अन्य ) पत्यय होने पर, भू (धातु) को हु ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा० . हन्ति... .. इन्तो। वित् छोड़ कर ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण वैसा न होने पर. हु आदेश नहीं होता है । उदा०-) होइ। पृथक्स्पष्टे णिव्वडः ॥ ६२ ॥ पृथग्भूते स्पष्टे च कर्तरि भुवो णिव्वइ इत्यादेशो भवति । णिव्वडइ । पृथक स्पष्टो वा भवतीत्यर्यः पृथग्भूत और स्पष्ट ऐसा कर्तरि अर्थ होने पर, भू (धातु ) को णिव्वड ऐसा आदेश होता है। उदा० ---णिब्वडइ ( यानी ) पृथक् अथवा स्पष्ट होता है ऐसा अर्थ है। प्रभो हुप्पो वा ॥ ६३ ॥ १. परिहीणविभवः । २. उद्भवति । ३. भूत। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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