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________________ चतुर्थः पादः भियो भा-चीहौ ।। ५३ ॥ बिभेतेरेतावादेशौ भवतः। भाइ। बीहइ। बीहि । बहुलाधिकाराद् भीओ। __ भो ( बिभेति ) धातु को { भा और बहि ऐसे ) ये आदेश होते हैं। उदा०भाइ... बीहियं । बहुल का अधिकार होने के कारण, ( बीह आदेश न होते हो) भीओ ( ऐसा रूप होता है )। आलीङोल्ली ॥ ५४॥ आलोयतेः अल्ली ईत्यादेशो भवति । अल्लीयइ । अल्लीणो। आली ( मालीयति ) को अल्लो ऐसा आदेश होता है। उदा.- अल्लोयइ, अल्लोणो। निलीडेर्णिलीअ-णिलुक्क-णिरिग्ध-लुक्कलिक्क-ल्हिक्काः ॥५॥ निलीङ एते षडादेशा वा भवन्ति । णिलीअइ । णिलुक्कइ। णिरिग्घइ । लुक्कइ । लिक्कइ । ल्हिक्कइ । निलिज्जइ: निली धातु को ( णिलीअ, णिलुक्क, णिरिग्घ, लुक्क, लिक्क, और ल्हिक्क ऐसे ) ये छ. आदेश विकल्प से होते हैं। उदा.-.णिलीअइ... ... ... ... ल्हिक्कइ। (विकल्प-पक्ष में :--- ) निलिज्जइ । विलीउविरा ॥ ५६ ॥ विली.विरा इत्यादेशो वा भवति । विराइ । विलिज्जइ । विली धातु को विरा ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा.---विराइ । ( विकल्प पक्ष में :-) विलिज्जइ । रुते रुज-रुण्टौ ॥ ५७॥ रौतेरेतावादेशौ भवतः । रुखइ । रुण्टइ। रवइ । रु ( रौति ) धातु को ( रुञ्ज और रुण्ट ऐसे ) ये आदेश विकल्प से होते हैं । उदा०- रुञ्जइ, रुण्टइ । ( विकल्प पक्ष में :-) रवइ । शूटेहणः ।। ५८ ॥ शृणोतेहण इत्यादेशो वा भवति । हणइ । सुणइ । १. बोह धातुका फ० भू० धा० वि०। २. आलीन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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