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________________ प्राकृतव्याकरणे १३१ इ के आगे और उ के आगे ऐसा कहा जाने के कारण (बह आदेश ) अनुक्रम से होता है ऐसा अर्थ न लिया करे । इसी तरह ( यहाँ से ) अगले सूत्रों में हो जाने । ङसिङसोः पुंक्लीबे वा ॥२३॥ पुंसि क्लीबे च वर्तमानादिदुतः परयोङसिङसोर्णो वा भवति। गिरिणो। तरुणो। दहिणो। महणो आगओ वि १आरो वा। पक्षे उसेः । गिरीओ गिरीउ गिरोहिंतो। तरूओ तरूउ तरूहिंन्तो। हिलुको निषेत्स्येते। उसः । गिरिस्स । तरुस्स । ङसिङसोरिति किम् । गिरिणा तरुणा कयं । पंक्लीब इति किम् । बुद्धीअ घेणूअ लद्धं समिद्धी वा । इदुत इत्येव । 'कमलाओ। कमलस्स। पुल्लिग में और नपुंसकलिंग में होने वाले ( शब्दों के अन्त्य ) इ और उ इनके आगे आने वाले सि और ङस् । इन प्रत्ययों) का णो विकल्प से होता है । उदा.गिरिणो....... विआरो वा । ( विकल्प- ) पक्षमें:- सि के बारे में:-गिरीओ... तरूहितो। ( इन इकारान्त और उकारान्त पुल्लिगी और नपुंसकलिंगी संज्ञामों के संदर्भ में पंचमी एकवचन के ) हि और लोप ( इन दोनों ) का निषेध आगे ( सूत्र ३.१२६-१२७ देखिए ) फिया नायगा। ङस् के बारे में:-गिरिस्स, तरुस्स । असि अस् इन प्रत्ययों का ( णो होता है ) ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण ये प्रत्यय न होने पर वह णो नहीं होता है ) उदा०--गिरिणा'... 'कयं । पुल्लिग में और नपुंसकलिंग में होने वाले ( शब्दों के ) ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण स्त्रीलिंगी शब्दों के बारे में ऐसा णो नहीं होता है : उदा०-) बुद्धीअ ... समिद्धी वा । इ और उ इनके हो आगे आने वाले ( ङसि और ङस् प्रत्ययों का णो होता है; अन्य स्वरों के आगे बाने वाले उसि और ङस् प्रत्ययों का णो नही होता है । उदा०-) कमलाओ,कमलस्स । टो णा ।। २४ ॥ पुंक्लीबे वर्तमानादिदुतः परस्य टा इत्यस्य णा भवति । गिरिणा 'गामणिणा । खलपुणा तरुणा। दहिणा महुणा । ट इति किम् । गिरी तरू दहिं महु। पुंक्लीब इत्येव बुद्धीअ घेणूअ कयं । इदूत इत्येव । 'कमलेण ।। पुल्लिग में और नपुंसकलिंग में होने वाले ( शब्दों के अन्त्य ) इ और उ इनके आने वाले टा ( प्रत्यय ) का णा होता है। उदा० ---गिरिणा... ..'महुणा । टा ( प्रत्यय ) का ( णा होता है ) ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण अन्य प्रत्ययों का ऐसा णा नहीं होता है। उदा०- , गिरी... ' मह। पुलिंग में और नपुंसकलिंग १. विकार । २. / लब्ध । ३. समृद्धि । ४. कमल । ५. /ग्रामणी । ६. खिमपू। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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