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तृतीयः पादः
कहा है ? ( कारण जस् प्रत्यय न होने पर, ऐसे आदेश नहीं होते हैं। उदा०-) अग्गी..... 'पेच्छइ । इ और उ इनके ही आगे ( आने वाले जस् को ऐसे आदेश होते हैं। जस् के पीछे अन्य स्वर हो, तो जम् को ऐसे आदेश नहीं होते हैं । उदा०-) बच्छा ।
वोतो डवो ॥ २१॥ . उदन्तात् परस्य जसः पुंसि डित् अवो इत्यादेशो वा भवति । साहवो' । पक्षे । साहओ साहउ साहू साहुणो । उत इति किम् । वज्छा । पुंसीत्येव । घेण । महूइं । जस इत्येव । साहू साहुणो पेच्छ। ...
उकारान्त शब्द के आगे जस प्रत्यय को; पुल्लिग में, डित् अवो ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा० - साहवो। विकल्प--- ) पक्षमें -साहओ साहणो । (शब्द के अन्त्य । ज के आगे ( यानी उकारान्त शब्द के आगे ) ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण जस् के पीछे उ छोड़कर अन्य स्वर हो, तो ऐसा आदेश नहीं होता है। उदा.- ) बच्छा। पुल्लिग में ही ( ऐसा आदेश होता है, पुल्लिग न होने पर, ऐसा आदेश नहीं होता है । उदा०-- ) घेणू' महूई। जस् ( प्रत्यय ) को हो ( ऐसा आदेश होता है। अन्य प्रत्ययों को नहीं । उदा० ---- ) साहू... पेच्छ ।
___ जसशसोर्णो वा ॥ २२ ॥ इदुतः परयो सशसोः पुंसि णो इत्यादेशो वा भवति। गिरिणो तरुणो' रेहन्ति पेच्छ वा । पक्षे । गिरी तरू। पंसीत्येव । दहीइं महइं। जस-शसोरिति किम् । गिरिं तरु । इडुत इत्येव । वच्छा । वच्छे। जसशसोरिति द्वित्वमिदुत इत्यनेन यथासंख्याभावार्थम् । एवमुत्तरसूत्रेपि ।
इ और उ इनके आगे जस् और शस् ( प्रत्ययों) को पुल्लिग में णो ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा०-गिरिणो... 'पेच्छ वा । ( विकल्प . ) पक्षमें:गिरी, तरू । पुल्लिग होने पर ही ( ऐसा आदेश होता है; पुल्लिग न होने पर ऐसा आदेश नहीं होता है। उदा० -- ) दहीई, महूई। जस् और शस ( प्रत्ययों ) को आदेश होता है ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण ये प्रत्यय न होने पर, ऐसा आदेश नहीं होता है। उदा०-) गिरि, तरुं । इ और उ इनके आगे ही ( जस् और शस प्रत्ययों को ऐसा आदेश होता है, अन्य स्वरों के आगे नहीं । उदा०-- ) वच्छा, वच्छे । जस् और शस् इन दोनों को (यह आदेश होता है ऐसे कहने का कारण यह है कि ) १. सांधु।
२. /तरु । ३. राजन्ते । सूत्र ४.१०० अनुसार राज् धातु को रेह ऐसा आदेश होता है।
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