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तृतीयः पादः
में (होने वाले इकारान्त और उकारान्त शब्दों के बारे में टा प्रत्यय का ना होता है, स्त्रीलिंगी शब्दों के बारे में नहीं होता है। उदा०-) बुद्धीस... ."कयं । इ और उ इनके ही आगे आने वाले (टा का णा होता है; अन्य स्वरों के आगे आने वाले टा का णा नहीं नहीं होता है । उदा०-) कमलेण ।।
क्लीवे स्वरान्म सेः ॥ २५ ॥ क्लीबे वर्तमानात् स्वरान्तानाम्नः सेः स्थाने म् भवति । वणं । पेम्म । दहिं । महु। दहि मह इति तु सिद्धापेक्षया। केचिदनुनासिकमपीच्छन्ति । दहि महुँ । क्लीब इति किम् । बालो। बाला। स्वरादिति इदुतो निवृत्यर्थम् । ___ नपुंसकलिंग में होने वाली स्वरान्त संज्ञा के आगे सि ( प्रत्यय ) के स्थान पर म् होता है । उदा.---वणं... ...मह। दहि और महु (ये रूप ) मात्र ( संस्कृत में से ) सिद्ध रूपों से बने हए हैं। कुछ ( वैयाकरण सि के स्थान पर) अनुनासिक भी मानते हैं। उदा०-दहि, महें। नपंसकलिंग में होने वाले ( स्वरान्त संज्ञा के मागे ) ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण नपुंसकलिंग न होने पर सि प्रत्यय का म् नहीं होता है । उदा०-) बालो, बाला। इदुतः ( = यानी इ और उ इनके आगे ) शब्द की निवृत्ति करने के लिए ( प्रस्तुत सूत्र में ) स्वरात् ( = स्वर के आगे ) शब्द प्रयुक्त किया है।
जसशस इ-ई-णयः सप्राग्दीर्घाः ॥ २६ ॥ क्लीबे वर्तमानानाम्नः परयो सशसोः स्थाने सानुनासिकसानुस्वाराविकारौ णिश्चादेशा भवन्ति समाग्दीर्घाः । एषु सत्स पूर्वस्वरस्य दीर्घत्वं विधीयते इत्यर्थः। ई। जाई 'वयणाई अम्हे। इं। "उम्मीलन्ति पंकयाई चिट्ठन्ति पेच्छ वा । दहीई हन्ति जेम वा । महइं मुश्च वा । णि । फूलन्ति पंकयाणि गेण्ह ११ वा। हन्ति दहीणि जेम वा । एवं महणि । क्लीब इत्येव । बच्छा । वच्छे । मसशस इति किम् । सुहं ।।
नपुंसकलिंग में होनेवाली संज्ञा के अगले जस और शस् ( प्रत्ययों ) के स्थान पर सानुनासिक और सानुस्वार इकार और णि ऐसे आदेश होते हैं। और ( उस १. वन । प्रेमन् । २. बाल। ३. बाला । ४. यानि वचनानि अस्माकम् ।
५. /उन्मील् । ६. पंकज । ७. भवन्ति ।
८. Vभुज् धातु का आदेश जेम है(सूत्र ४.११० देखिए)। ९. Vमुच । १०. फुल्ल ।
११. गृहाण। १२. सुख ।
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