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________________ प्राकृतव्याकरणे १०१ त्रस्त शब्द को हित्य और तट्ठ ऐसे आदेश विकल्प से होते हैं । उदा-हित्थं ... ..'तत्थं । बृहस्पतौ बहो भयः ॥ १३७ ।। बृहस्पतिशब्दे बह इत्यस्यावयवस्य भय इत्यादेशो वा भवति । भयस्सई भयप्फई भयप्पई । पक्षे । बहस्सई बहप्फई बहप्पई । वा बृहस्पती ( १.१३८) इति इकारे उकारे च । विहस्सई बिहप्फई बिहप्पई। बुहस्सई बुहप्फई बुहप्पई। बृहस्पति शब्द में बह इस अवयव को भय ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा०-भयस्सई... .. 'भयप्पई ( विकल्प-) पक्ष में :--बहस्सई.... ..'बहप्पई । 'वा बृहस्पती' सूत्र के अनुसार ( ऋस्वर के ) इकार और उकार होने परः-बिहस्सई बुहप्पई ( ऐसे वर्णान्तर होंगे )। __ मलिनोमय-शुक्ति-छुप्तारब्ध-पदातेमइलाबह-सिप्पि छिक्काहत्तपाइक्कं ।। १३८ ॥ मलिनादीनां यथासंख्यं मइलादय आदेशा वा भवन्ति । मलिनं । मइलं मलिणं । उभयम् अवहं । उवहमित्यपि 'केचित् । अवहोआसं । उभयबलं । आर्षे । ' उभयोकालं। शुक्ति । सिप्पी सुत्ती। छुप्त। छिक्को छुत्तो। आरब्धं । आढत्तो आरद्धो । पदाति । पाइको पयाई । मलिन इत्यादि यानी मलिन, उभय, शुक्ति, छुप्त, आरब्ध और पदाति इन शब्दों को अनुक्रम से महल इत्यादि यानी मइल, वह, सिप्पि, छिक्क आढत्त, और पाइक्क ऐसे आदेश विकल्प से होते हैं। उदा०-मलिन... ..'अ ; कुछ के मतानुसार, ( उभय को ) उवह ऐसा भी ( आदेश होता है ); अवहोआसं... ''बलं । आर्ष प्राकृत में उभयोकालं { ऐसा दिखाई देता है ); शुक्ति'' ''पयाई । दंष्ट्राया दाढा ।। १३६ ।।। पृथग् योगाद् वेति निवृत्तम् । दंष्ट्राशब्दस्य दाढा इत्यादेशो भवति । दाढा । अयं संस्कृतेपि । . (यह सूत्र ) अलग रूप से कहे जाने के कारण, ( सूत्र २.१२१ मे से अनुवृत्ति से आने वाले ) वा शब्द की निवृत्ति ( इस सूत्र में ) होती है। दंष्ट्रा शब्द को दाढा ऐसा आदेश होता है। उदा-दाढा । यह ( दाढा शब्द ) संस्कृत में भी है। बहिसो बाहिं बाहिरौ ।। १४० ।। बहिःशब्दस्य बाहिं बाहिर इत्यादेशौ भवतः । बाहिं बाहिरं । १. उभयबल । २. उभयकाल । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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