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प्राकृतव्याकरणे
( संस्कृत में मूलत: ) उकारान्त होकर जिनको ( स्त्रीलिंगी बनाने का ) ङी प्रत्यय लगा हुआ है, ऐसे शब्द तन्वीतुल्य शब्द होते हैं । उन शब्दों में संयुक्त व्यञ्जन से अन्त्य व्यञ्जन के पूर्व उकार आता है । उदा० तणुबी मउवी । क्वचित् अन्य शब्दों में भी ( संयुक्त व्यञ्जन में से अन्त्य व्यञ्जन के पूर्व उकार आता है । उदा०- २) स्रुघ्नम् सुरुग्धं । आर्ष प्राकृत में : -- सूक्ष्मम् सुहुमं । एकस्वरे श्वः स्वे ॥ ११४ ॥
एकस्वरे पदे यौ श्वस् स्व इत्येतौ तयोरन्त्यव्यञ्जनात् पूर्वं उद् भवति । श्वः कृतम् । सुवे कयं । स्वे जनाः । सुवे जणा । एकस्वर इति किम् । स्वजनः सयणो ।
एक स्वर होने वाले श्वस् ( = श्व: ) और स्व ये वो शब्द ) हैं, उनमें अन्त्य व्यंजन के पूर्व उ आता है ! उदा० श्वः "जणा। एक स्वर होने वाले ( पद में ) ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण यदि पद एक स्वर न हो, तो यहाँ कहा हुआ वर्णान्तर नहीं होता है । उदा०- ) स्वजन: सयणो ।
ज्यायामीत् ।। ११५ ।।
ज्याशब्दे अन्त्यव्यञ्जनात् पूर्वं ईद् भवति । जीमा ।
ज्या शब्द में अन्त्य व्यंजन के पूर्व ई आता है । उदा० - जीआ ।
करेणूवाराणस्यी रणोर्व्यत्ययः ॥ ११६ ॥
अनयो रेफणकारयोव्यंत्ययः स्थितिपरिवृत्तिर्भवति । कणेरू । वाणारसी | स्त्रीलिंगनिर्देशात् । पुंसि न भवति । ए सो करेण ।
करेणू और वाराणसी शब्दों में रेफ और णकार का व्यत्यय यानी स्थितिपरिवृत्ति ( = स्थान में बदल ) होती है । उदा० - कणेरू, वाणारसी । ( सूत्र में करेणू शब्द में ) स्त्रीलिंग को निर्देश होने से, ( करेणु शब्द ) पुंल्लिंग में होने पर ( स्थिति परिवृत्ति ) नहीं होती है । उदा० एसो करेणू | आला ने लनोः ॥
११७ ॥
आलानशब्दे लनोव्यंत्ययो भवति । आणालो । आणा लक्खम्भो । आलान शब्द में ल और न का व्यत्यय होता है । उदा० - आणालो "
क्खंभो ।
अचलपुरशब्दे
१. एषः करेणुः ।
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अचलपुरे चलोः ॥ ११८ ॥ चकारलकारयोव्यंत्त्ययो भवति । अलचपुरं ।
२. आलान स्तम्भ |
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